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________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र साधर्म्यता से उसका समावेश भविष्यकाल में होता है। इसलिए भविष्यत्काल, भूतकाल से एक समय अधिक है और भूतकाल, भविष्यकाल से एक समय न्यून है / ' सर्वाद्धी का प्रतीत तथा अनागतकाल के समय से न्यूनाधिकता 43. सव्वद्धा गं भंते ! कि संखेज्जायो तीतद्धामो० पुच्छा। गोयमा ! नो संखेज्जायो तीतद्धाओ, नो असंखेज्जायो, णो अणंतानो तीतद्धानो, सम्वद्धा णं तीयद्धाओ सातिरेगदुगुणा, तीतद्धा णं सव्वद्वानो थोवूणए अद्ध / [43 प्र.] भगवन् ! सर्वाद्धा (सर्वकाल) क्या संख्यात अतीताद्धाकालरूप है ? इत्यादि प्रश्न / [43 उ.] गौतम ! वह संख्यात-असंख्यात-अनन्त अतीताद्धाकालरूप नहीं है, किन्तु अतीताद्धाकाल से सर्वाद्धा (सर्वकाल) कुछ अधिक द्विगुण है और प्रतीताद्धाकाल, सर्वाता से कुछ कम अर्द्धभाग है। 44. सन्वद्धा णं भंते ! कि संखेज्जायो प्रणागयद्धानो० पुच्छा। गोयमा ! नो संखेज्जाम्रो अणागयतामो, नो असंखेज्जाओ अणागयद्धाओ, नो अणंतामो अणागयद्धाश्रो, सम्वद्धा गं प्रणागयद्धानो थोवणगदुगुणा, अणागयद्धा णं सम्वद्धातो सातिरेगे अद्धे / [44 प्र. भगवन् ! सर्वाद्धा (सर्वकाल)क्या संख्यात अनागताद्धाकालरूप है ? इत्यादि प्रश्न / |44 उ.] गौतम ! वह संख्यात-असंख्यात-अनन्त अनागताद्धाकालरूप नहीं, किन्तु सर्वाद्धा, अनागत-अद्वाकाल से कुछ कम दुगुना है और अनागताहाकाल सद्धिा से सातिरेक (कुछ अधिक) अर्द्धभाग है। विवेचन–सर्वकाल से अतीत और अनागतकाल की न्यूनाधिकता का परिमाण-सर्वाद्धा अर्थात् सर्वकाल, भूतकाल से वर्तमान (एक) समय अधिक दुगुना है और भूतकाल, सद्धिाकाल से एक समय कम अर्धभागरूप है। इसी प्रकार सर्वाद्धाकाल अनागतकाल से कुछ कम दुगुना है और अनागतकाल सर्वाद्धाकाल से सातिरेक अर्द्धभागरूप है।' शंका-समाधान-इस सम्बन्ध में कोई प्राचार्य कहते हैं भूतकाल से भविष्यत्काल अनन्तगुणा है / जैसा कि कहा है तेऽणता तोश्रद्धा, अणागयद्धा प्रणतगुणा।" ___अर्थात्-प्रतीताद्धा (भूतकाल) अनन्त पुद्गलपरावर्तनरूप है। उससे अनन्तगुणा अनागताद्धा (भविष्यत्काल) है। शंका ---यदि वर्तमान समय में भूतकाल और भविष्यत्काल दोनों समान हों तो वर्तमान समय व्यतीत हो जाने पर भविष्यत्काल एक समय कम हो जाएगा तथा इसके बाद दो, तीन, चार इत्यादि 1. (क) विवाहपण्णत्तिसुतं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. 2, पृ. 1015 (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 881 2. बियाहपष्णत्तित्तं भाग 2, पृ. 1716 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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