________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 5] [383 विवेचन--पुद्गलपरिवर्तन से सर्वाद्धा तक एकत्व-बहुत्वदष्टि से अवपिणी-उत्सपिणीरूप कालमान-पुद्गलपरिवर्तन आदि एक हों या अनेक, वे अनन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणीरूप हैं। भूत-भविष्यत् तथा सर्वकाल में पुद्गलपरिवर्तन की अनन्तता 36. तीतद्धा णं भंते ! कि संखेज्जा पोग्गलपरियट्टा० पुच्छा। गोयमा! नो संखेज्जा पोग्गलपरियट्टा, नो प्रसंखेज्जा, अणंता पोग्गलपरियट्टा / [36 प्र.] भगवन् ! अतीताद्धा (भूतकाल) क्या संख्यात पुद्गलपरिवर्तनरूप है ? इत्यादि प्रश्न / [39 उ. | गौतम ! न तो वह संख्यात पुद्गलपरिवर्तनरूप है और न असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनरूप है, किन्तु अनन्त पुद्गलपरिवर्तनरूप है / 40. एवं प्रणागतद्धा वि / [40] इसी प्रकार अनागताद्धा (भविष्यकाल) के सम्बन्ध में जानना चाहिए। 41. एवं सम्बद्धा वि। [41] इसी प्रकार सर्वाद्धा (सर्वकाल) के विषय में जानना / विवेचन-निष्कर्ष-भूतकाल, भविष्यत्काल और सर्वकाल तीनों अनन्त पुद्गलपरिवर्तनरूप हैं। अनागतकाल की अतीतकाल से समयाधिकता 42. अणागतद्धा णं भंते ! कि संखेज्जायो तीतद्धाओ, असंखेज्जाओ, अणतायो ? गोयमा ! नो संखेज्जानो तीतद्धानो, नो असंखेज्जाओ तीतद्धानो, नो अणंतानो तीतद्धाओ, मणागयडर णं तीतद्धाश्रो समयाहिया; तीतद्धा णं प्रणागयद्धामो समयूणा। [42 प्र.] भगवन् ! अनागतकाल क्या संख्यात अतीतकालरूप है अथवा असंख्यात या अनन्त अतीतकालरूप है ? [42 उ.) गौतम ! वह न तो संख्यात प्रतीतकालरूप है, न असंख्यात और अनन्त प्रतीतकालरूप है, किन्तु अतीताद्धाकाल से अनागताद्धाकाल एक समय अधिक है और अनागताद्धाकाल से अतीताद्धाकाल एक समय न्यून है / विवेचन--अनागतकाल का भूतकालरूप कालमान–प्रस्तुत सूत्र (42) में बताया गया है कि अनागतकाल संख्यात-असंख्यात-अनन्त अतीतकालरूप नहीं है. किन्त वह अतीतकाल से एक अधिक है / अर्थात् भूतकाल से भविष्यत्काल एक समय अधिक है, क्योंकि भूतकाल और भविष्यकाल दोनों अनादित्व और अनन्तत्व की दृष्टि से समान हैं। इसके बीच में श्री गौतमस्वामी के प्रश्न का समय है / वह अविनष्ट होने से भूतकाल में समाविष्ट नहीं किया जा सकता; किन्तु अविनष्ट्र धर्म की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org