________________ 378] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [6 प्र.] भगवन् ! क्या (अनेक) पानप्राण (श्वासोच्छ्वास) संख्यात समय के होते हैं ? [6 उ.] गौतम ! पूर्ववत् समझना चाहिए / 10. थोवा णं भंते ! कि संखेज्जा समया० ? एवं चेव / [10 प्र.] भगवन् ! (अनेक) स्तोक संख्यात समयरूप है ? इत्यादि प्रश्न / [10 उ.] गौतम ! पूर्ववत् जानना / 11. एवं जाय उस्सप्पिणीयो ति। [11] इसी प्रकार (लव से लेकर) यावत् अवसर्पिणीकाल तक समझना चाहिए। 12. पोग्गलपरियट्टा णं भंते ! कि संखेज्जा समया० पुच्छा। गोयमा ! नो खंखेज्जा समया, नो प्रसंखेज्जा समया, अणंता समया। [12 प्र.] भगवन् ! क्या पुद्गल-परिवर्तन संख्यातसमय के होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [12 उ.] गौतम ! वह संख्यात समय के या असंख्यात समय के नहीं होते, किन्तु अनन्त समय के होते हैं। विवेचन--कालमान-प्ररूपणा समय से लेकर शीर्षप्रहेलिका तक 46 भेद हैं। यहाँ तक का काल-परिमाण गणना के योग्य है। शीर्षप्रहेलिका में 164 अंकों की संख्या पाती है / कालपरिमाण तो इसके आगे भी बताया गया है, परन्तु वह उपमेयकाल है, गणनीय काल नहीं। समय से लेकर शीर्षप्रहेलिका तक की संख्या का अर्थ पहले लिखा जा चुका है। इसी प्रकार पल्योपम, सागरोपम आदि उपमाकाल का अर्थ भी पहले अंकित किया जा चुका है।। प्रावलिका से पुदगलपरिवर्तन तक का समयगत कालमान- प्रावलिका से उत्सपिणी तक का कालमान संख्यात और अनन्त समय का नहीं अपितु असंख्यात समय का है। किन्तु पुद्गलपरिवर्तन या भूत, भविष्य या सर्वकाल का मान अनन्त समय का बताया गया है / प्रावलिकाएँ, आनप्राण, स्तोक से लेकर अवसर्पिणियों (बहुवचन) तक कदाचित् असंख्यात समय की और कदाचित् अनन्त समय की हैं / परन्तु पुद्गलपरिवर्तन (बहुवचन) अनन्त समय के हैं। ___ इसमें दूसरे से लेकर सातवें सूत्र तक एकवचनपरक सूत्र हैं और पाठवें से बारहवें सूत्र तक बहुवचनपरक सूत्र हैं।' प्रानप्राणादि कालों में एकत्व-बहुत्व को अपेक्षा से प्रावलिका : संख्या-प्ररूपणा 13. आणापाण णं भंते ! कि संखेज्जायो प्रावलियाओ० पुच्छा। गोयमा ! संखेज्जाओ प्रावलियानो, नो असंखेज्जाओ आवलियाओ, नो प्रणंतानो मावलियाओ। 1. भगवती (हिन्दी विवेचन) भाग 7, पृ. 3341 2. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा 2. पृ. 1012-13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org