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________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 5] 4. थोवे णं भंते ! कि संखेज्जा ? एवं चेव / |4 प्र. भगवन् ! स्तोक संख्यात समय का होता है ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [4 उ ] गौतम ! पूर्ववत् (असंख्यात समय का) जानना चाहिए / 5. एवं लवे वि, मुहत्ते वि / एवं अहोरत्ते / एवं पक्खे मासे उडू अयणे संवच्छरे जुगे वाससते वाससहस्से वाससयसहस्से पुन्वंगे पुवे, तुडियंगे तुडिए, अडडंगे अडडे, अववंगे अववे, हूहुयंगे हूहुए, उप्पलंगे उप्पले, पउमंगे पउमे, नलिणंगे नलिणे, अत्थनिऊरंगे अथानिऊरे, अउयंगे अउये, नउयंगे नउए, पउयंगे पउए, चूलियंगे, चूलिए, सीसपहेलियंगे, सोसपहेलिया, पलिप्रोवमे, सागरोवमे, प्रोसप्पिणी एवं उस्सप्पिणी वि। [5] इसी प्रकार लव, मुहूर्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, युग, वर्षशत (सौ वर्ष), वर्षसहस्र (हजार वर्ष), वर्ष शत-सहस्र (लाख वर्ष), पूर्वाग, पूर्व, त्रुटितांग, त्रुटित, अटटांग, अटट, अववांग, अवव, हूहूकांग, हूहूक, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग पद्म, नलिनांग, नलिन, अक्षनिपूरांग, अक्षनिपूर, अयुतांग, अयुत, नयुतांग, नयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्षप्रहेलिकांग, शीर्षप्रहेलिका, पल्योपम, सागरोपम, अवसपिणी और उत्सपिणी, इन सबके भी (पूर्वोक्त कथनानुसार) जानने चाहिए / अर्थात् इनमें से प्रत्येक के असंख्यात समय होते हैं / 6. पोग्गलपरियट्टे णं भंते ! कि संखेज्जा समया असंखेज्जा समया० पुच्छा। गोयमा ! नो संखेज्जा समया, नो असंखेज्जा समया, अणंता समया। [6 प्र.] भगवन् ! पुद्गलपरिवर्तन संख्यात समय का होता है, असंख्यात समय का या अनन्त समय का होता है ? 6 उ.] गौतम ! वह संख्यात समय का या असंख्यात समय का नहीं होता, किन्तु अनन्त समय का होता है। 7. एवं तीतद्ध-प्रणागयद्ध-सव्वद्धा। [7] इसी प्रकार भूतकाल, भविष्यत्काल तथा सर्वकाल भी समझना चाहिए / 8. आवलियाओ णं भंते ! कि संखेज्जा समया० पुच्छा। गोयमा ! नो संखेज्जा समया, सिय असंखेज्जा समया, सिय अणंता समया। [8 प्र. भगवन् ! क्या (बहुत) पावलिकाएँ संख्यात समय की होती हैं ? इत्यादि प्रश्न / 18 उ.] गौतम ! वह संख्यात समय की नहीं होती, किन्तु कदाचित् असंख्यात समय की और कदाचित् अनन्त समय की होती हैं। 6. आणापाणू णं भंते ! कि संखेज्जा समया०? एवं चेव। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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