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________________ 370 [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूब 233. निरेयस्स केवतियं० ? सटाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जतिभाग; परढाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अणंतं कालं / [233 प्र.) भगवन् ! निष्कम्पक (द्विप्रदेशी स्कन्ध) का अन्तर कितने काल का होता है ? 233 उ.] गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट प्रावलिका के असंख्यातवें भाग का अन्तर होता है। परस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट अनन्तकाल का अन्तर होता है। 234. एवं जाय अणंतपएसियस्स / [234] इसी प्रकार यावत् अनन्त-प्रदेशी स्कन्ध तक के अन्तर के विषय में जानना ___ चाहिए / 235. परमाणुपोग्गलाणं भंते ! सध्येयाणं केवतियं कालं अंतर होइ ? नत्यंतरं। [235 प्र.] भगवन् ! (अनेक) सर्वकम्पक परमाणु-पुद्गलों का अन्तर कितने काल का होता है ? [235 उ.] गौतम ! (उनका) अन्तर नहीं होता। 236. निरयाणं केवतियं० ? नत्यंतरं। [236 प्र.] भगवन् ! निष्कम्प (परमाण-पुद्गलों) का अन्तर कितने काल का होता है ? [236 उ.] गौतम ! (उनका भी) अन्तर नहीं होता। 237. दुपएसियाणं भंते ! खंधाणं देसेयाणं केवतियं कालं ? नत्थंतरं। [237 प्र. भगवन् ! (बहुत-से) देशकम्पक द्विप्रदेशी स्कन्धों का अन्तर कितने काल का होता है ? [237 उ.] गौतम ! (उनका) अन्तर नहीं होता। 238. सव्वेयाणं केवतियं कालं० ? नत्यंतरं / [238 प्र.] भगवन् ! सर्वकम्पक (द्विप्रदेशी स्कन्धों) का अन्तर कितने काल का होता है ?) [238 उ.] गौतम ! (उनका) अन्तर नहीं होता। 236. निरेयाणं केवतियं कालं ? नत्यंतरं। [236 प्र.] भगवन् ! निष्कम्प (द्विप्रदेशी स्कन्धों) का अन्तर कितने काल का होता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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