SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2567
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पत्नीसवां शतक : उद्देशक 4] 227. निरेया कालतो केवचिरं ? सव्यर्छ। [227 प्र.] भगवन् ! (द्विप्रदेशी स्कन्ध) निष्कम्पक कितने काल तक रहते हैं ? [227 उ.] सदा काल / 228. एवं जाव अणंतपरेसिया। 228] इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक का कालमान जानना चाहिए / 226. परमाणपोग्गलस्स णं भंते सब्वेयस्स केवतियं कालं अंतरं होति ? सटाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्नं कालं; परढाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं एवं चेव / [226 प्र.] भगवन् ! सर्वकम्पक परमाणु-पुद्गल का अन्तर कितने काल का होता है ? [226 उ.] गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय का और उत्कृष्टतः असंख्यात काल का अन्तर होता है / परस्थान की अपेक्षा भी जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट असंख्यातकाल का अन्तर होता है। 230. निरेयस्स केवतियं अंतरं होइ ? सटाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जतिभाग; परटाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं असंखेनं कालं / [230 प्र.] भगवन् ! निष्कम्पक (परमाणु-पुद्गल) का अन्तर कितने काल का होता है ? [230 उ.] गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट प्रावलिका के प्रसंख्यातवें भाग का अन्तर होता है। परस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट असंख्यात काल का अन्तर होता है। 231. दुपएसियस्स णं भंते ! खंधस्स देसेयस्स केवतियं कालं अंतरं होइ ? सट्ठाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं; परट्ठाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अणंतं कालं / |231 प्र. भगवन् ! देशकम्पक द्विप्रदेशी स्कन्ध का अन्तर कितने काल का होता है ? [231 उ.] गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट असंख्यातकाल का होता है। 232. सब्वेयस्स केवतियं कालं ? एवं चेव जहा देसेयस्स। {232 प्र. भगवन् ! सर्वकम्पक (द्विप्रदेशी स्कन्ध) का अन्तर कितने काल का होता है ? [232 उ.] गौतम ! जिस प्रकार देशकम्पक द्विप्रदेशी स्कन्ध का अन्तर कहा है, उसी प्रकार सर्वकम्पक का भी जानना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy