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________________ 36.] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 188. एवं जाव अणंतपएसिया। [188] इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक जानना चाहिए / विवेचन-पुद्गलों को सार्द्धता-अनीता का रहस्य-समसंख्या वाले (परमाणों) प्रदेशों के जो स्कन्ध होते हैं, वे सार्द्ध होते हैं, उनके बराबर दो भाग हो सकते हैं और विषमसंख्या वाले प्रदेशों के जो स्कन्ध होते हैं, वे अनर्द्व होते हैं, क्योंकि उनके दो बराबर भाग नहीं हो सकते। जब बहुत-से परमाणु समसंख्या वाले होते हैं, तब सार्द्ध होते हैं और जब बे विषमसंख्या वाले होते हैं, तब अनर्द्ध होते हैं, क्योंकि संघात (मिलने) और भेद (पृथक् होने) से उनकी संख्या अवस्थित नहीं होती। इसलिए वे सार्द्ध और अनर्द्ध दोनों प्रकार के होते हैं।' परमाणु से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक सकम्पता-निष्कम्पता प्ररूपरणा 186. परमाणुपोग्गले णं भंते ! कि सेए, निरेए ? गोयमा! सिय सेए, सिय निरेए। [186 प्र.] भगवन् ! (एक) परमाणु-पुद्गल सैज (सकम्प) होता है या निरेज (निष्कम्प)? [189 उ.] गौतम ! वह कदाचित् सकम्प होता है और कदाचित् निष्कम्प होता है / 160. एवं जाव अणंतपएसिए। [160] इसी प्रकार (द्विप्रदेशी स्कन्ध से लेकर) यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्धपर्यन्त जानना चाहिए। 161. परमाणुपोग्गला णं भंते ! कि सेया, निरेया ? गोयमा ! सेया वि, निरेया वि / [191 प्र.] भगवन् ! (बहुत) परमाणु-पुद्गल सकम्प होते हैं या निष्कम्प ? [191 उ.] गौतम ! वे सकम्प होते हैं और निष्कम्प भी / 162. एवं जाव अणंतपएसिया। [192] इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक जानना चाहिए। क्वेिचन--सैज और निरेज का आशय-सैज का अर्थ है--- कम्पन, स्पन्दन या चलनादि धर्म युक्त तथा निरेज का अर्थ है-कम्पन, स्पन्दन या चलनादि धर्म से रहित / परमाणु की प्रायः निष्कम्पदशा होती है, उसकी सकम्पदशा कादाचित्क होती है, सदा नहीं। इसी प्राशय से परमाणु से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध को सकम्प और निष्कम्प दोनों बताया है। 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 883 2. (क) भगवती. अ. वति, पत्र 886 (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 7, प. 3325 (ग) भगवती. प्रमेय चन्द्रिकाटीका, भाग 15, पृ. 895 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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