________________ (व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र जीव विग्रहर्गात को प्राप्त नहीं हैं, वदा प्रकार के हैं, यथा---ऋज गति वाल और अवस्थित / यहा केवल अवस्थित ही ग्रहण किये हैं, ऐसा सम्भावित है। शरीर में रहते हुए मरणसमुद्घात करके ईलिकागति से उत्पत्ति-क्षेत्र को अंशत: स्पर्श करते हैं, इसलिए वे देशत: कम्पक होते हैं। अथवा स्वक्षेत्र में रहे हुए जीव अपने हाथ-पैर प्रादि अवयवों को इधर-उधर चलाते हैं, इस कारण वे देशतः सकम्पक हैं।' कठिन शब्दार्थ-सेय-चलन-कम्पन के सहित- सैज / निरेय-निश्चल--निष्कम्प / परमाणु-पुद्गलों से अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक की अनन्तता 87, परमाणुपोग्गला भंते ! कि संखेज्जा, असंखेज्जा, अणता? गोयमा ! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता / 187 प्र. भगवन् ! परमाणु-पुद्गल संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं ? | 87 उ.] गौतम ! संख्यात नहीं, असंख्यात भी नहीं, किन्तु अनन्त हैं। 88. एवं जाव प्रणंतपदेसिया खंधा। [88] इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक जानना / एक प्रदेशावगाढ से असंख्येय प्रदेशावगाढ पुद्गलों को अनन्तता 86. एगपएसोगाढा णं भंते ! पोग्गला कि संखेज्जा, असंखेज्जा, अणता? एवं चेव / [86 प्र.] भगवन् ! प्राकाश के एक प्रदेश में रहे हुए पुद्गल संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? [89 उ.] गौतम ! पूर्ववत् (अनन्त) हैं / 60. एवं जाव असंखज्जपदेसोगाढा। {60] इसी प्रकार यावत् असंख्येय प्रदेशों में रहे हुए पुद्गलों तक जानना चाहिए। एक समय से लेकर असंख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गलों की अनन्तता 61. एगसमयद्वितीया णं भंते ! पोग्गला कि संखेज्जा, असंखेज्जा० ? एवं चेव। [61 प्र.] भगवन् ! एक समय की स्थिति वाले पुद्गल संख्यात है, असंख्यात है या अनन्त हैं ? [61 उ. गौतम ! पूर्ववत् जानना / 62. एवं जाव असंखेज्जसमयट्टितीया। |92] इसी प्रकार यावत् असंख्यात-समय की स्थिति वाले पुद्गलों के विषय में भी कहना चाहिए। 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 877 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org