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________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 4) [84 प्र.] भगवन् ! बे (अशैलेशी-प्रतिपन्नक) देशकम्पक हैं या सर्वकम्पक ? [84 उ.] गौतम ! वे देशकम्पक भी हैं और सर्वकम्पक भी हैं। इस कारण से हे गौतम ! यावत् वे निष्कम्प भी हैं, यह कहा गया है। 55. [1] नेरइया णं भंते ! कि देसेया, सक्वेया ? गोयमा ! देसेया वि, सव्वेया वि। [85-1 प्र.] भगवन् ! नैरयिक देशकम्पक हैं या सर्वकम्पक ? [85-1 उ.] गौतम ! वे देशकम्पक भी हैं और सर्वकम्पक भी हैं। [2] से केणठेणं जाव सन्वेया वि? गोयमा ! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा--विग्गहगतिसमावन्नगा य, अविग्गहगतिसमावनगा य / तत्थ णं जे ते विग्गहगतिसमावन्नगा ते णं सब्वेया, तत्थ णं जे ते अविग्गहगतिसमावन्नगा ते गं देसेया, से तेणद्रेणं जाव सम्वेया वि। [85-2 प्र.! भगवन् ! किस कारण से कहा जाता है कि नैरयिक देशकम्पक भी हैं और सर्वकम्पक भी हैं ? [85-2 उ.] गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के कहे हैं। यथा--विग्रहगति-समापन्नक और अविग्रहगति-समापन्नक / उनमें से जो विग्रहगति-समापन्नक हैं, वे सर्वकम्पक हैं और जो अविग्रहगति-समापन्नक हैं, वे देशकम्पक हैं / इस कारण से यह कहा जाता है कि नैरयिक देशकम्पक भी हैं और सर्वकम्पक भी हैं। 86. एवं जाव वेमाणिया। [83] इसी प्रकार (असुरकुमार से लेकर) यावत् वैमानिकों तक जानना चाहिए। विवेचन-जीवों और चौवीस दण्डकों में सकम्पता-निष्कम्पता-सिद्धत्व-प्राप्ति के प्रथम समयवर्ती जीव 'अनन्तर-सिद्ध' कहलाते हैं, क्योंकि उस समय एक समय का भी अन्तर नहीं होता, अतएव सिद्धत्व के प्रथम समय में वर्तमान सिद्धजीवों में कम्पन होता है। उसका कारण यह है कि सिद्धिगमन का और सिद्धत्व-प्राप्ति का समय एक ही होने से और सिद्धिगमन के समय गमनक्रिया होने सं वे सकम्प होते हैं। जिन्हें सिद्धत्व प्राप्ति के पश्चात् दो-तीन आदि समय का अन्तर पड़ जाता है, वे 'परम्पर-सिद्ध' कहलाते हैं / वे सर्वथा निष्कम्प होते हैं। मोक्षगमन के पूर्व जो जीव शैलेशी अवस्था को प्राप्त होते हैं, वे योगों का सर्वथा निरोध कर देते हैं, अतः उस समय वे निष्कम्प होते हैं। जो जीव मर कर ईलिका-गति से उत्पत्तिस्थान में जाते हैं, वे देशतः सकम्प होते हैं, क्योंकि उनका पूर्वशरीर में रहा हुआ अंश गतिक्रिया-रहित होने से निष्कम्प (निश्चल) होता है और जो अंश गतिक्रिया-सहित है, वह सकम्प है। इस कारण वह देशत: सकम्प कहा गया है। विग्रहगति को प्राप्त जो जीवत अर्थात मर कर अन्य गति में (उत्पत्तिस्थान को) जाता हुया जीव गेंद की गति के समान सर्वप्रदेशों से उत्पन्न होता है, वह सर्वतः सकम्प होता है / जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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