________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 3) [315 [88 उ.] गौतम ! वे न तो सादि-सपर्यवसित हैं, न सादि-अपर्यवसित हैं और न अनादिसपर्यवसित हैं, किन्तु अनादि-अपर्यवसित हैं / 86. एवं जाव उट्टमहायताओ। [86] इसी प्रकार का कथन यावत् ऊर्ध्व और अधोदिशा में लम्बी श्रेणियों के विषय में भी जानना चाहिए। 60. लोयागाससेढोनो भंते ! कि सादीयाओ सपज्जवसियाओ० पुच्छा। गोयमा! सादीयानो सपज्जवसियाओ, नो सादीयाओ अपज्जवसियानो, नो प्रणादीयानो सपज्जवसियाओ, नो अणादीयानो अपज्जवसियानो। [60 प्र.] भगवन् ! लोकाकाश की श्रेणियाँ सादि-सपर्यवसित हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [60 उ.] गौतम ! वे सादि-सपर्यवसित (आदि-अन्त सहित) हैं, किन्तु न तो सादि-अपर्यवसित हैं, न अनादि-सपर्यवसित हैं और न ही अनादि-अपर्यवसित हैं / 61. एवं जाव उद्यमहायतायो। [11] इसी प्रकार का कथन यावत ऊर्ध्व और अधो लंबी लोकाकाश-श्रेणियों के विषय में समझना चाहिए। 62. अलोयागाससेढीयो णं भंते ! कि सादीयाप्रो० पुच्छा। गोयमा ! सिय सादीयानो सपज्जवसियाओ, सिय सादीयानो अपज्जवसियानो, सिय प्रणादीयाओ सपज्जवसियानो, सिय अणावीयानो अपज्जवसियाओ। [62 प्र.] भगवन् ! अलोकाकाश की श्रेणियाँ सादि-सपर्यवसित हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [62 उ.] गौतम ! वे कदाचित् सादि-सपर्यवसित हैं, कदाचित् सादि-अपर्यवसित हैं, कदाचित् अनादि-सपर्यवसित हैं और कदाचित् अनादि-अपर्यवसित हैं / 63, पाईणपडोणायतानो दाहिणुत्तरायतानो य एवं चेव, नवरं नो सादीयानो सपज्जवसियानो, सिय सादीयाओ अपज्जवसियानो, सेसं तं चेव / [93] पूर्व-पश्चिम लम्बी तथा दक्षिण-उत्तर लम्बी अलोकाकाश-श्रेणियाँ भी इसी प्रकार समझनी चाहिए / किन्तु इनमें विशेषता यह है कि ये सादि-सपर्यवसित नहीं हैं और कदाचित् सादिअपर्यवसित हैं / शेष सब पूर्ववत् है / 64. उड्डमहायताप्रो जहा प्रोहियाप्रो तहेव चउभंगो। [14] ऊर्ध्व और अधो लम्बी श्रेणियों के औधिक श्रेणियों के समान चार भंग जानने चाहिए। विवेचन श्रेणियों में सादि-अनादित्व प्ररूपणा-किसी भी प्रकार के विशेषण से रहित सामान्य श्रेणियों में चार भंगों में से अनादि-अपर्यवसित भंग पाया जाता है, शेष तीन भंग नहीं पाए जाते / लोकाकाश की श्रेणियों में 'सादि-सपर्यवसित' भंग पाया जाता है, क्योंकि लोकाकाश परिमित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org