________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 3] [313 [65 उ.] गौतम ! वे कदाचित् कृतयुग्मरूप होते हैं, इत्यादि जिस प्रकार पूर्वोक्त पाठ से स्थिति के सम्बन्ध में कहा है, उसी प्रकार यहाँ कहना / 66. एवं नीलवण्णपज्जवेहि वि। [66] इसी प्रकार नीले वर्ण के पर्यायों के विषय में समझना चाहिए / 67. एवं पंचहि वणेहि, दोहिं गंधेहि, पंचाह रसेहि, अहिं फासेहिं जाव लुक्खफासपज्जवेहि। [67] इसी प्रकार पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और आठ स्पर्श के विषय में, यावत् रूक्षस्पर्शपर्याय तक कहना चाहिए। विवेचन--प्रस्तुत दो सूत्रों (65-66) में पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और आठ स्पर्श, इन बीस बोलों की अपेक्षा से कृतयुग्म आदि का विचार किया गया है / विविध दिग्वर्ती श्रेणियों की द्रव्यार्थ से यथायोग्य संख्यात-असंख्यात-अनन्तता को प्ररूपणा 66. सेढीयो णं भंते ! दबट्टयाए कि संखेज्जानो, असंखेज्जाओ, अणतातो? गोयमा ! नो संखेज्जायो, नो असंखेज्जामो, अणंतायो / [68 प्र.] भगवन् ! (आकाश-प्रदेश की) श्रेणियां द्रव्यार्थरूप से संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? [68 इ.] गौतम ! वे संख्यात नहीं, असंख्यात भी नहीं, किन्तु अनन्त हैं। 66. पाईणपडीणायताओ णं भंते ! सेढोमो दन्यद्वयाए• ? एवं चेव / [69 प्र.] भगवन् ! पूर्व और पश्चिम दिशा में लम्बी श्रेणियां द्रव्यार्थरूप से संख्यात हैं ? इत्यादि प्रश्न / [69 उ.] गौतम ! वे पूर्ववत् (अनन्त) हैं / 70. एवं दाहिणुत्तरायतानो वि / {70] इसी प्रकार दक्षिण और उत्तर में लम्बी श्रेणियों के विषय में भी जानना चाहिए / 71. एवं उड्डमहायताप्रो वि / [71] इसी प्रकार ऊर्ध्व और अधोदिशा में लम्बी श्रेणियों के विषय में भी जानना चाहिए। 72. लोयामाससेढीनो णं भंते ! दध्वटुताए कि संखेन्जानो, असंखेज्जानो, अणंताओ? गोयमा ! नो संखेज्जाओ, असंखेज्जाओ, नो अणंतायो / [72 प्र.] भगवन् ! लोकाकाश की श्रेणियाँ द्रव्यार्थ रूप से संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? [72 उ] गौतम ! वे संख्यात नहीं, अनन्त भी नहीं, किन्तु असंख्यात हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org