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________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र इस प्रकरण के सू. 51 से 60 तक में एकवचन-बहुवचन की अपेक्षा से पंच संस्थानों का क्षेत्र सम्बन्धी विचार किया गया है। परिमण्डलादि संस्थानों में कृतयुग्मादि समयस्थिति की प्ररूपणा 61. परिमंडले णं भंते ! संठाणे कि कडजुम्मसमय द्वितीए, तेयोगसमयहितीए, दावरजुम्मसमयद्वितीए, कलियोगसमयहितीए ? गोयमा ! सिय कडजुम्मसमय द्वितीए जाव सिय कलियोगसमयद्वितीए / [61 प्र.] भगवन् ! परिमण्डल-संस्थान कृतयुग्म-समय की स्थिति वाला है, व्योज-समय की स्थिति वाला है, द्वापरयुग्म-समय की स्थिति वाला है या कल्योज-समय की स्थिति वाला है ? [61 उ.] गौतम ! कदाचित् कृतयुग्म-समय की स्थिति वाला है, यावत् कदाचित् कल्योजसमय की स्थिति वाला है। 62. एवं जाव आयते। [62] इस प्रकार यावत् अायत-संस्थान पर्यन्त जानना / 63. परिमंडला णं भंते ! संठाणा किं कडजुम्मसमयद्वितीया० पुच्छा / गोयमा! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मसमद्वितीया जाय सिय कलियोगसमय द्वितीया; विहाणावेसेणं कडजुम्मसमयद्वितीया विजाव कलियोगसमयद्वितीया वि। [63 प्र.] भगवन् ! (अनेक) परिमण्डल-संस्थान कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले हैं ? इत्यादि प्रश्न? [63 उ. गौतम ! वे अोघादेश से कदाचित् कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले हैं यावत् कदाचित् कल्योज- समय की स्थिति वाले हैं। विधानादेश से कृतयुग्म-समय की स्थिति बाले भी हैं, यावन् कल्योज-समय की स्थिति वाले भी हैं। 64. एवं जाव प्रायता। [64] इसी प्रकार यावत् आयत-संस्थान तक जानना चाहिए / विवेचन परिमण्डलादि संस्थानों का काल की अपेक्षा विचार--आशय यह है कि परिमण्डलादि संस्थानों से परिणत स्कन्ध कितने काल तक ठहरते हैं और उन समयों में चतुष्कादि का अपहार करने पर कितने शेष बचते है, जिससे वे कृतयुग्मादि संख्या वाले बनते हैं।' पांच संस्थानों में वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श की अपेक्षा कृतयुग्मादिप्ररूपणा 65. परिमंडले गं भंते ! संठाणे कालवण्णपज्जवेहि कि कडजुम्मे जाव कलियोगे? गोयमा ! सिय कडजुम्मे, एवं एएणं अभिलावेणं जहेब ठितीए / [65 प्र.] भगवन् ! परिमण्डल-संस्थान के काले वर्ण के पर्याय क्या कृतयुग्म हैं, यावत् कल्योज रूप हैं ? 1. भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 7, पृ. 3238 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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