________________ [ध्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [43 प्र.] भगवन् ! वृत्त-संस्थान द्रव्यार्थरूप से कृतयुग्म है ? इत्यादि प्रश्न / [43 उ.] गौतम ! (इसका कथन भी) पूर्ववत् जानना। 44. एवं जाव प्रायते / [44 ] इसी प्रकार यावत् आयत-संस्थान पर्यन्त जानना / 45. परिमंडला णं भंते ! संठाणां दवद्वताए कि कडजुम्मा, तेयोगा० पुच्छा। गोयमा ! अोघाएसेणं सिय कडजुम्मा, सिय तेयोगा, सिय दाबरजुम्मा, सिथ कलियोगा। विहाणावेसेणं नो कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावरजुम्मा, कलिगोगा। [45 प्र.] भगवन् ! (अनेक) परिमण्डल-संस्थान द्रव्यार्थरूप से कृतयुग्म हैं, योज हैं या कल्योज हैं ? [45 उ.] गौतम ! अोधादेश से--(सामान्यतः सर्वसमुदितरूप से) कदाचित् कृतयुग्म, कदाचित् योज, कदाचित् द्वापरयुग्म और कदाचित् कल्योज होते हैं। विधानादेश से-(प्रत्येक की अपेक्षा से) कृतयुग्म नहीं, त्र्योज नहीं, द्वापरयुग्म नहीं, किन्तु कल्योज हैं। 46. एवं जाव आयता। [46] इसी प्रकार यावत् (अनेक) आयत-संस्थान तक जानना चाहिए / 47. परिमंडले णं भंते ! संठाणे पदेसटुताए कि कडजुम्मे पुच्छा। गोयमा ! सिय कडजुम्मे, सिय तेयोगे, सिय दावरजुम्मे, सिय कलियोगे। [47 प्र.] भगवन् ! परिमण्डल-संस्थान प्रदेशार्थरूप से कृतयुग्म है ? इत्यादि प्रश्न / [47 उ.] गौतम ! वह कदाचित् कृतयुग्म है, कदाचित् त्र्योज है, कदाचित् द्वापरयुग्म है, और कदाचित् कल्योज है / 48. एवं जाव आयते। [48] इसी प्रकार यावत् आयत-संस्थान पर्यन्त जानना चाहिए। 46. परिमंडला णं भंते ! संठाणा पदेसटुताए कि कडजुम्मा० पुच्छा। गोयमा ! ओधादेखणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोगा। विहाणादेसेणं काजुम्मा वि, तेयोगा वि, दावरजुम्मा वि, कलियोगा वि / [46 प्र.] भगवन् ! (अनेक) परिमण्डल-संस्थान प्रदेशार्थरूप से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न / [46 उ.] गौतम ! अोघादेश से-वे कदाचित् कृतयुग्म हैं, यावत् कदाचित् कल्योज होते हैं। विधानादेश से वे कृतयुग्म भी हैं, त्र्योज भी हैं, द्वापरयुग्म भी हैं और और कल्योज भी हैं / 50. एवं जाव प्रायता। {50] इसी प्रकार यावत् (अनेक) आयत-संस्थान तक जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.