________________ 292] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 15. जीवे णं भंते ! जाइं दव्वाई तेयगसरोरत्ताए गिण्हति० पुच्छा। गोयमा ! ठियाइं गेण्हइ, नो अठियाई गेहइ / सेसं जहा पोरालियसरीरस्स / [15 प्र.] भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को तैजसशरीर के रूप में ग्रहण करता है ? (इत्यादि पूर्ववत् पृच्छा) [15 उ.] गौतम ! वह (तैजसशरीर के) स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है, अस्थित द्रव्यों को 16. कम्मगसरीरे एवं चेव जाव भावओ वि गिण्हति / [16] कार्मणशरीर के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिए; यावत् भाव से भी ग्रहण करता है। 17. जाई दवाई दव्यतो गेण्हति ताई कि एगपएसियाई गेण्हति, दुपएसियाई गेहइ० ? एवं जहा भासापदे जाव आणुपुर्दिव गेण्हइ, नो प्रणाणुयुवि गेहति / [17] भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को द्रव्य से ग्रहण करता है, वे एक प्रदेश वाले ग्रहण करता है या दो प्रदेश वाले ग्रहण करता है ? इत्यादि प्रश्न / [17 उ.] गौतम ! जिस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र के ग्यारहवें भाषापद में कहा गया है, तदनुसार यावत् प्रानुपूर्वी से (क्रमपूर्वक) ग्रहण करता है या अनानुपूर्वी से (क्रमरहित) नहीं; यहाँ तक कहना। 18. ताई भंते ! कतिदिसि गेण्हति ? गोयमा ! निवाघातेणं० जहा पोरालियस्स / [18 प्र.] भगवन् ! जीव कितनी दिशाओं से आए हुए द्रव्य ग्रहण करता है ? [18 उ.] गौतम ! निर्व्याघात हो तो छहों दिशाओं से आए हुए द्रव्यों को ग्रहण करता है, इत्यादि औदारिकशरीर से सम्बन्धित वक्तव्यानुसार कहना। 16. जीवे णं भंते ! जाई दवाइं सोइंदियत्ताए गेण्हइ० ? जहा वेउब्वियसरीरं। [19 प्र.] भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को श्रोत्रेन्द्रिय रूप में ग्रहण करता है.... ? (इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् / [16 उ.] गौतम ! वैक्रियशरीर-सम्बन्धी वक्तव्यता के समान / 20. एवं जाव जिभिदियत्ताए। [20] इसी प्रकार यावत् जिह्वन्द्रिय-पर्यन्त जानना। 21. फासिदियत्ताए जहा ओरालियसरीरं / [21] स्पर्शेन्द्रिय के विषय में औदारिकशरीर के समान समझना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org