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________________ 284 [ সাল্লখ 7. एवं जाव वेमाणियाणं / [7] इस प्रकार यावत् वैमानिक तक जानना चाहिए। विवेचन प्रथम समयोत्पन्नक नरकक्षेत्र में प्रथम समय में उत्पन्न नैरयिक 'प्रथम समयोत्पन्नक' कहलाता है। इस प्रकार के दो नारक, जिनकी उत्पत्ति विग्रहगति से, अथवा ऋजुगति से प्राकर, अथवा एक की विग्रहगति से और दूसरे की ऋजुगति से आकर हुई है , वे भी 'प्रथमसमयोत्पन्नक' कहलाते हैं।' समयोगी-विषमयोगी--जिन दो जीवों के योग समान हों, वे 'समयोगी' और जिनके विषम हों, वे 'विषमयोगी' कहलाते हैं।" हीनयोगी, अधिकयोगी और तुल्ययोगी: कौन और कैसे?—आहारक नारक की अपेक्षा अनाहारक नारक हीन योग वाला होता है, क्योंकि जो नारक ऋजुगति से प्राकर आहारक रूप से उत्पन्न होता है, वह निरन्तर आहारक होने के कारण पुद्गलों से उपचित (वृद्धिंगत) होता है, इस कारण अधिक योग वाला होता है। जो नारक विग्रहगति से आकर अनाहारक रूप से उत्पन्न होता है, वह अनाहारक होने से पुद्गलों से अनुपचित होता है, अतः हीनयोग बाला होता है / जो समान समय की विग्रहगति से आकर अनाहारकरूप से उत्पन्न होते हैं अथवा ऋजुगति से आकर प्राहारकरूप से उत्पन्न होते हैं, वे दोनों एक दूसरे की अपेक्षा तुल्ययोग वाले होते हैं। जो ऋजुगति से आकर आहारक उत्पन्न हुअा है, और दूसरा विग्रहगति से आकर अनाहारक उत्पन्न हुप्रा है, वह उसकी अपेक्षा उपचित होने से 'अत्यधिक विषमयोगी' होता है। सूत्र में हीनता और अधिकता का कथन किया गया है, वह सापेक्ष है। समानधर्मतारूप तुल्यता प्रसिद्ध होने से उसका पृथक् कथन नहीं किया गया है। किन्तु यह ध्यान रहे कि यहाँ परिस्पन्दन रूप योग की ही विवक्षा की गई है। योग के पन्द्रह भेदों का निरूपरण 8. कतिविधे णं भंते ! जोए पनते ? गोयमा! पन्नरसविधे जोए पन्नत्ते तं जहा-सच्चमणजोए मोसमणजोए सच्चामोसमणजोए प्रसच्चामोसमणजोए, सच्चवइजोए मोसवइजोए सच्चामोसवइजोए असच्चामोसवइजोए, पोरालियसरीरकायजोए ओरालियमोसासरीरकायजोए वेउस्वियसरीरकायजोए वेउन्वियमीसासरीरकायजोए पाहारगसरीरकायजोए आहारगमीसासरीरकायजोगे, कम्मासरीरकायजोए 15 / 1. (क) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 7, पृ. 3201 (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 854 2. बही, पत्र 854 3. (क) वही, पत्र 854 (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 7, पृ. 3201-3202 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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