________________ चोवीसवां शतक : उद्देशक 24] [269 15. सणंकुमारगदेवा गं भंते ! कतोहितो उवव० ? उबवातो जहा सक्करप्पभपुढविनेरइयाणं जाव[१५ प्र.] भगवन् ! सनत्कुमारदेव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [15 उ.] इनका उपपात शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के समान जानना चाहिए / 16. पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए सणंकुमारदेवेस उववज्जित्तए ? अवसेसा परिमाणादीया भवाएसपज्जवसाणा सच्चेव वत्तस्यया भाणियन्वा जहा सोहम्मे उववज्जमाणस्स, नवरं सणंकुमारदिति संवेहं च जाणेज्जा / जाहे य अप्पणा जहन्नकाल द्वितीओ भवति ताहे तिसु वि गमएसु पंच लेस्सागो प्रादिल्लाओ कायन्वानो। सेसं तं चेव। [16 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तसंख्येयवर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक, जो सनत्कुमार. देवों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले सनत्कुमारदेवों में उत्पन्न होता है ? इत्यादि प्रश्न / [16 उ.] परिमाण से लेकर भवादेश तक की संभी वक्तव्यता, सौधर्मकल्प में उत्पन्न होने वाले (संख्येय-वर्षायुष्य सं. पं. तिर्यञ्च) के समान कहनी चाहिए / परन्तु सनत्कुमार की स्थिति और संवेध (उससे भिन्न) जानना / जब वह स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला होता है, तब तीनों ही गमकों में प्रथम की पांच लेश्याएँ होती हैं / शेष पूर्ववत् / 17. जदि मणुस्सहिंतो उवव० ? मणुस्साणं जहेव सक्करप्पभाए उववज्जमाणाणं तहेव णव वि गमगा भाणियव्या, नवरं सणंकुमार द्विति संवेहं च जाणेज्जा। [17 प्र. यदि सनत्कुमारदेव, मनुष्यों से आकर उत्पन्न हो तो? इत्यादि प्रश्न / [17 उ.] शर्कराप्रभा में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों के समान यहाँ भी नौ गमक कहने चाहिए। विशेष यह है कि सनत्कुमारदेवों की स्थिति और संवेध (उससे भिन्न) कहना चाहिए। 18. माहिंदगदेवा णं भंते ! कओहितो उववज्जति ? जहा सणंकुमारगदेवाणं वत्तम्वया तहा माहिंदगदेवाण वि भाणियव्वा, नवरं माहिदगदेवाणं ठिती सातिरेगा भाणियव्वा सा चय। [18 प्र. भगवन् ! माहेन्द्रदेव कहाँ से पाकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [18 उ.] जिस प्रकार सनत्कुमारदेव की वक्तव्यता कही, उसी प्रकार माहेन्द्रदेव की भी जाननी चाहिए / किन्तु माहेन्द्रदेव की स्थिति सनत्कुमारदेव से सातिरेक कहनी चाहिए / 19. एवं बंभलोगदेवाण वि वत्तम्बया, नवरं बंभलोगद्विति संवेहं जाणेज्जा / एवं जाव सहस्सारो, नवरं ठिति संवेहं च जाणेज्जा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org