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________________ 268] व्याख्याप्रज्ञप्तिसून मनुष्यों से नहीं, संज्ञी मनुष्यों में भी असंख्यात वर्ष एवं संख्यात वर्ष दोनों प्रकार की आयु वालों से आकर उत्पन्न होते हैं / ' अवगाहना-विषयक स्पष्टीकरण-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च के अधिकार में प्रथम के दो गमकों में जघन्य अवगाहना धनुषपृथक्त्व और उत्कृष्ट छह गाऊ की कही है, किन्तु यहाँ मनुष्य के प्रकरण में पहले और दूसरे गमक में अवगाहना जघन्य एक गाऊ और उत्कृष्ट तीन गाऊ की कही है / तिर्यञ्च के तीसरे गमक में जघन्य, उत्कृष्ट अवगाहना 6 गाऊ की कही है, किन्तु यहाँ जघन्य और उत्कृष्ट 3 गाऊ की कही है। चौथे गमक में तिर्यञ्च में जघन्य धनुषपृथक्त्व और उत्कृष्ट दो गाऊ कही है जबकि यहाँ जघन्य और उत्कृष्ट एक गाऊ की अवगाहना कही है। ईशान से सहस्रार देव तक में उत्पन्न होनेवाले तिर्यञ्चों व मनुष्यों के उपपातादि बीस द्वारों को प्ररूपरणा 12. ईसाणा देवा णं भंते ! करो० उववज्जति ?. ईसाणदेवाणं एस चेव सोहम्मगदेवसरिसा वत्तव्वया, नवरं असंखेज्जवासाउयसमिपंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स जेसु ठाणेसु सोहम्मे उववज्जमाणस्स पलिप्रोवमठितीएसु ठाणेसु इहं सातिरेगं पलिप्रोवमं कायव्वं / चउत्थगमे प्रोगाहणा जहन्नेणं धणुपुहत्तं, उक्कोसेणं सातिरेगाई दो गाउयाई। सेसं तहेव / [12 प्र.] भगवन् ! ईशानदेव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ?, इत्यादि प्रश्न / [12 उ.] ईशानदेव की यह वक्तव्यता सौधर्मदेवों के समान है। विशेष यह है कि सौधर्मदेवों में उत्पन्न होने वाले जिन स्थानों में असंख्या तवर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च की स्थिति एक पल्योपम की कही है, वहाँ सातिरेक पल्योपम की जाननी चाहिए। चतुर्थ गमक में अवगाहना जघन्य धनुषपृथक्त्व, उत्कृष्ट सातिरेक दो गाऊ की होती है / शेष पूर्ववत् / 13. असंखेज्जवासाउयसनिमणसस्स वि तहेव ठितो जहा पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स असंखेज्जवासाउयस्स, ओगाहणा वि जेसु ठाणेसु गाउयं तेसु ठाणेसु इहं सातिरेगं गाउयं / सेसं तहेव / [13] असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्य की स्थिति, 'असंख्य वर्ष की आयु वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक के समान जाननी चाहिए। अवगाहना जहाँ एक गाऊ को कही है वहाँ सातिरेक गाऊ की जानना / शेष पूर्ववत् / / 14. संखेज्जवासाउयाणं तिरिक्खजोणियाणं मणूसाण य जहेब सोहम्मे उववज्जमाणाणं तहेव निरवसेसं णव वि गमगा, नवरं ईसाणे ठिति संवेहं च जाणेज्जा। [14] सौधर्मदेवों में उत्पन्न होने वाले संख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यञ्चों और मनुष्यों के विषय में जो नौ गमक कहे हैं, वे ही ईशानदेव के विषय में समझने चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति और संवेध ईशानदेवों के जानने चाहिए / 1. भगवतीसूत्र (प्रमेयचन्द्रिका टीका) भा. 15, पृ. 476-477 2. भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. 6, पृ. 3182 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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