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________________ 260] व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 6. सो चेव अप्पणा जहन्नकाल द्वितीयो जाओ, जहन्नेणं अट्ठभागपलिनोवमद्वितीएसु, उक्कोसेण वि अट्ठभागपलिनोवमट्टितोएसु उवव० / [6] यदि वह (सं. पं. तिर्यञ्च) स्वयं जघन्यकाल की स्थिति वाला हो और ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम के आठवें भाग की स्थिति वाले ज्योतिष्कों में उत्पन्न होता है / [चतुर्थ गमक 7. ते गं भंते ! जीवा एग०? एस चेव वत्तव्वया, नवरं प्रोगाहणा जहन्नेणं धणुपुहत्तं, उक्कोसेणं सातिरेगाइं अट्ठारस धणुसयाइं / ठिती जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेण वि अट्ठभागपलिनोवमं / एवं अणुबंधो वि / सेसं तहेव / कालाएसेणं जहन्नेणं दो अट्ठभागपलिओवमाई, उक्कोसेण धि दो अट्ठभागपलिनोवमाई, एवतियं० / जहन्नकालद्वितीयस्स एस चेव एक्को गमगो। [चउत्थो गमो] / [7 प्र.] भगवन् ! वे जीव (असंख्यात-वर्षायु एक सं. पं. ति.) एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [7 उ.] गौतम ! इस विषय में पूर्वोक्त वक्तव्यता जानना / विशेष यह है कि उनकी अवगाहना जघन्य धनुषपृथक्त्व और उत्कृष्ट सातिरेक अठारह सौ धनुष की होती है। स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम के आठवें भाग की होती है। अनबन्ध भी इसी प्रकार समझना / शेष / कालादेश से-जघन्य और उत्कृष्ट पत्योपम के दो आठवें (3) भाग, इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है / जघन्यकाल की स्थिति वाले के लिए यह एक ही गमक होता है। [चतुर्थ गमक] 8. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालद्वितीयो जाओ, सा चेव प्रोहिया वत्तव्यया, नवरं ठिती जहानेणं तिन्नि पलिप्रोवमाई, उक्कोसेण वि तिन्नि पलिश्रोवमाइं। एवं अणुबंधो वि / सेसं तं चेव / एवं पच्छिमा तिष्णि गमगा नेयन्वा, नवरं ठिति संवेहं च जाणेज्जा। एते सत्त गमगा। [7-8-6 गमगा] / [8] यदि वह (असंख्यात-वर्षायुष्क सं. पं. तिर्यञ्च) स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो और ज्योतिष्कों में उत्पन्न हो, तो औधिक (सामान्य) गमक के समान वक्तव्यता जानना / विशेष यह है कि स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की होती है / अनुबन्ध भी इसी प्रकार जानना / शेष सब पूर्ववत् / इसी प्रकार अन्तिम तीन गमक [7-8-6] जानने चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति और संवेध (भिन्न) समझना चाहिए / ये कुल सात गमक हुए। [गमक 7-8-9] विवेचन--स्पष्टीकरण-(१) प्रथम गमक में जो पल्योपम का भाग जघन्य कालादेश कहा है, उसमें से एक तो असंख्यातवर्षायुष्क-सम्बन्धी है और दूसरा तारा-ज्योतिष्क-सम्बन्धी है तथा उत्कृष्ट जो एक लाख वर्ष अधिक चार पल्योपम बताए हैं, उनमें से तीन पल्योपम तो असंख्यात. वर्षायुष्क-सम्बन्धी हैं और सातिरेक एक पल्योपम चन्द्र-विमानवासी ज्योतिष्क-सम्बन्धी है / (2) तीसरे गमक में स्थिति जघन्य एक लाख वर्ष अधिक पल्योपम की कही है, इस विषय में यद्यपि असंख्यात वर्ष की आयु वालों की जघन्य स्थिति सातिरेक पूर्वकोटि होती है, तथापि यहाँ एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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