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________________ चौवीसवां शतक : उद्देशक 22] [257 वारपध्यन्तर देवों में उत्पन्न होनेवाले मनुष्यों के उत्पाद-परिमाण प्रादि बीस द्वारों की प्ररूपरणा 8. जदि मणुस्से० असंखेज्जवासाउयाणं जहेव नागकुमाराणं उद्देसे तहेव वत्तव्यया, नवरं ततियगमए ठिती जहन्नेणं पलिनोवमं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिग्रोवमाइं / प्रोगाहणा जहन्नेणं गाउयं, उक्कोसेणं तिनि गाउयाई / सेसं तहेव / संवेहो से जहा एस्थ चैव उद्देसए असंखेज्जवासाउयसन्निचिदियाणं। [8] यदि वे (वाणव्यन्तर देव), मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो उनकी वक्तव्यता नागकुमार-उद्देशक में कहे अनुसार असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्यों के समान कहना चाहिए। विशेष यह है कि तीसरे गमक में स्थिति जघन्य एक पल्योपम की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की जाननी चाहिए / अवगाहना जघन्य एक गाऊ की और उत्कृष्ट तीन गाऊ की होती है। शेष सब पूर्ववत् जानना / इसका संवेध इसी उद्देशक में जैसे असंख्यात वर्ष की प्राय वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च का कहा गया है, वैसे ही कहना चाहिए। 6. संखेज्जवासाउयसग्निमणुस्सा जहेव नागकुमारुद्देसए, नवरं वाणमंतर-ठिति संवेहं च जाणेज्जा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० / ॥चउवीसइमे सए : बावीसइमो उद्देसो समत्तो // 24-22 // [9] जिस प्रकार नागकुमार उद्देशक में कहा गया है, उसी प्रकार संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों की वक्तव्यता कहनी चाहिए। परन्तु वाणव्यन्तर देवों की स्थिति और संवैध उससे भिन्न जानना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् यह इसी प्रकार है,' यों कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं / विवेचन-स्थितिसम्बन्धी स्पष्टीकरण-यहाँ तीसरे गमक में जघन्य स्थिति पल्योपम की बताई गई है। यद्यपि असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों की जघन्य स्थिति सातिरेक पूर्वकोटि वर्ष की होती है, तथापि यहाँ पल्योपम की बताई गई है, इसका कारण यह है कि वह पल्योपम की आयु वाले वाणव्यन्तर देवों में उत्पन्न होने वाला है और असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यञ्च अपनी आयु से अधिक आयु वाले देवों में उत्पन्न नहीं होते, यह बात पहले कही जा चुकी है। अवगाहना—जिनकी पल्योपमप्रमाण आयु है, उनकी अवगाहना सुषम-दुःषम आरे में एक गाऊ की होती है। ॥चौवीसवाँ शतक : बाईसवाँ उद्देशक सम्पूर्ण // 1. (क) भगवती. प्र. वृत्ति, पत्र 846-847 (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 6, पृ. 3166 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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