________________ 256] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 3. सो चेव जहनकालद्वितीएसु उववन्नो, जहेव णागकुमाराणं बितियगमे बत्तव्वया। [बोलो गमो]। __[3] यदि वह जघन्य काल की स्थिति वाले वाणव्यन्तर में उत्पन्न होता है, तो नागकुमार के दूसरे गमक में कही हुई वक्तव्यता जाननी चाहिए। [द्वितीय गमक 4. सो चेव उक्कोसकालद्वितीएसु उववन्नो, जहन्नेणं पलिग्रोवमट्टितीएसु, उक्कोसेण वि पलिअोवमद्वितीएसु / एस चैव वत्तम्वया, नवरं ठिती जहन्नेणं पलिओवम, उक्कोसेणं तिन्नि पलिग्रोवमाई। संवेहो जहन्नेणं दो पलिओवमाई, उषकोसेणं चत्तारि पलिनोवमाइं; एवतियं० / [तइयो गमो]। [4] यदि वह उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले वाणव्यन्तरों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम की स्थिति वाले वाणव्यन्तरों में उत्पन्न होता है, इत्यादि वक्तव्यता पूर्ववत् जानना। स्थिति जघन्य दो पल्योपम और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की जाननी चाहिए। संवेध-जघन्य दो पल्योपम और उत्कृष्ट चार पल्योपम, इतने काल तक यावत् गंमनागमन करता है। [तृतीय गमक] 5. मज्झिमगमगा तिन्नि वि जहेब नागकुमारेसु / [4-6 गमगा। 5] मध्य के तीन गमक नागकुमार के तीन मध्य गमकों के समान कहने चाहिए। [4-5-6] 6. पच्छिमेसु तिसु गमएसुतं चेव जहा नागकुमारईसए, नबरं ठिति संवेहं च जाणेज्जा। [७-६गमगा] : [6] अन्तिम तीन गमक भी नागकुमार-उद्देशक में कहे अनुसार कहने चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति और संवैध भिन्न-भिन्न जानना चाहिए। [गमक 7-8-6] 7. संखेज्जवासाउय० तहेव, नवरं ठिती अणुबंधो, संवेहं च उभो ठितीए जाणेज्जा। [1-- गमगा]। [7] संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों की वक्तव्यता भी उसी प्रकार जाननी चाहिए / विशेष यह है कि स्थिति और अनुबन्ध भिन्न है तथा संवेध, दोनों की स्थिति को मिलाकर कहना चाहिए / गमक 1 से 6 तक] विवेचन-कुछ स्पष्टीकरण-(१) वाणव्यन्तर देवों के प्रकरण में असंख्येय वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रियों के अधिकार में उत्कृष्ट चार पल्योपम का जो कथन किया गया है, वह संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम और बाणव्यन्तर देव की एक पल्योपम, इस प्रकार दोनों की स्थिति को मिलाकर चार पल्योपम का संवेध जानना चाहिए / (2) नागकुमार के दूसरे गमक की वक्तव्यता प्रथम गमक के समान है। परन्तु यहाँ जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति दस हजार वर्ष की जाननी चाहिए। (3) संवेध-कालादेश से जघन्य 10 हजार वर्ष अधिक सातिरेक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष अधिक तीन पल्योपम का जानना चाहिए।' 1 भगवती. अ. वत्ति, पत्र 846 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International