SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2444
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [भ्याख्याप्रतिसूत्र 3. अवसेसा वत्तव्यया जहा पंचिदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जतस्स तहेव, नवरं परिमाणे जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिनि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जति, जहा तहि अंतोमुहहि तहा इहं मासपुहत्तेहिं संवेहं करेज्जा / सेसं तं चेव / 3| शेष वक्तव्यता पंचेन्द्रिय-तिर्थञ्चयोनिक में उत्पन्न होने वाले रत्नप्रभा के नरयिक के समान जानना चाहिए। परिमाण में विशेष यह है कि वे जघन्य एक, दो या तीन, अथवा उत्कृष्ट मख्यात उत्पन्न होते हैं। वहाँ तो अन्तमुहूर्त के साथ संवेध किया था, किन्तु यहाँ मासपथक्त्व के साथ संवेध करना चाहिए / शेष पूर्व-कथित अनुसार जानना चाहिए / 4. जहा रयणप्पभाए तहा सक्करप्पभाए वि वत्तब्वया, नवरं जहन्नेणं वासपुहत्तद्वितीएसु, उक्कोसेणं पुवकोडि० / प्रोगाहणा-लेस्सा-नाण-ट्ठिति-अणुबंध-संवेहनाणत्तं च जाणेज्जा जहेव तिरिक्खजोणियउद्देसए (उ० 20 सु० 8-6) एवं जाव तमापुढविनेरइए। 4] रत्नप्रभा की वक्तव्यता के समान शर्कराप्रभा की भी वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष यह है कि यह जघन्य वर्षपृथक्त्व की तथा उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है। अवगाहना, लेश्या, ज्ञान, स्थिति, अनुबन्ध और संवेध का नानात्व (विशेषता) तिर्यंचयोनिक-उद्देशक (उ. 20, सू. 8-6) में कहे अनुसार जानना / इस प्रकार यावत् तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिक तक जानना चाहिए / विवेचन--मनष्यों में उत्पन्न होने वाले नारकों के सम्बन्ध में--(१) रत्नप्रभाध्वी के नारक यदि मनुष्यायु का बन्ध करते हैं, तो वे मासपृथक्त्व (दो महीने से नौ महीने तक) से कम आयु का बन्ध नहीं करते, क्योंकि उनमें तथाविध परिणाम का अभाव होता है / इसी प्रकार अन्यत्र भी (आगे की नरक पृध्वियों में भी) यही कारण समझना चाहिए / (2) परिमाणद्वार में विशेष--नारक, सम्मूच्छिम मनुष्यों में नहीं उत्पन्न होते हैं / गर्भज संख्यात हैं, इसलिए वे (नारक) संख्यात ही उत्पन्न होते हैं। (3) रत्नप्रभापृथ्वी से प्राकर पंचेन्द्रियतिर्यञ्च में उत्पन्न होने वालों की जघन्य स्थिति पंचेन्द्रियतिर्यञ्च-उद्देशक (20 वें उद्देशक) में अन्तर्मुहूर्त बताई है, अतः अन्तर्मुहर्त के साथ संवेध किया है, किन्तु यहाँ मनुष्य-उद्देशक (उ. 21) में मनुष्यों की जघन्य स्थिति को लेकर मासपृथक्त्व के साथ संवेध किया है, क्योंकि काल की अपेक्षा से जघन्य संवेध मासपृथक्त्व अधिक दस हजार वर्ष है। (4) शर्कराप्रभा आदि की समग्र वक्तव्यता पंचेन्द्रियतिर्यञ्च-उद्देशक के अनुसार जाननी चाहिए।' मनुष्यों में उत्पन्न होने वाले अग्नि-वायुकाय के सिवाय एकेन्द्रिय-विकलेन्द्रिय-पंचेन्द्रियतिर्यंच-मनुष्यों के उत्पाद-परिमाणादि वीस द्वारों की प्ररूपणा 5. जति तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं एगिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति, जाव पंचेदियतिरिक्खजोणिएहितो उवव० ? ---......- - . -.. 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 845 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy