________________ एक्कवीसइमो : मणुस्स-उद्देसओ इक्कीसवां उद्देशक : मनुष्य (को उत्पादादिप्ररूपणा) गति की अपेक्षा मनुष्यों के उपपात का निरूपण 1. मणुस्सा णं भंते ! कमोहितो उववज्जति ? कि नेरइरहितो उववज्जति जाव देवेहितो उवव० ? गोयमा ! नेरइएहितो वि उववज्जंति, एवं उववानो जहा पंचेदियतिरिक्खजोणियउद्देसए (उ० 20 सु० 1---2) जाव तमापुढविनेरइएहितो वि उववज्जंति, नो अहेसत्तमपुढविनेरइएहितो उवव० / [1 प्र.] भगवन् ! मनुष्य कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं। क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? या मनुष्यों, तिर्यञ्चों अथवा देवों से आकर होते हैं ? [1 उ.] गौतम ! नैरयिकों से भी पाकर उत्पन्न होते हैं, यावत् देवों से भी प्राकर उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार यहाँ 'पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक-उद्देशक' (उ. 20, सू. 1-2) में कहे अनुसार, यावत्-तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु अधःसप्तम-पृथ्वी के नरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, यहाँ तक उपपात का कथन करना चाहिए। विवेचन निष्कर्ष-मनुष्य, चारों गतियों से आकर उत्पन्न होते हैं। यदि वे नरकगति से उत्पन्न होते हैं तो छठे नरक तक से आकर होते हैं, सप्तम नरक से आकर उत्पन्न नहीं होते।' मनुष्यों में उत्पन्न होनेवाले रत्नप्रभा से तमःप्रभा तक के नैरयिकों में उत्पाद-परिमाणादि बीस द्वारों की प्ररूपणा 2. रयणप्पभपुढविनेरइए णं भंते ! जे भविए मणुस्सेसु उवव० से णं भंते ! केवतिकाल ? गोयमा ! जहन्नेणं मासपुहत्तद्वितीएसु, उक्कोसेणं पुत्वकोडिआउएसु। [2 प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी का नैरयिक जो मनुष्यों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है। [2 उ.] गौतम ! वह जवन्य मासपृथक्त्व और उत्कृष्ट पूर्वकोटिवर्ष की स्थिति वाले (मनुष्यों में उत्पन्न होता है / ) 1. वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. 2 (मूलपाठटिप्पणयुक्त), पृ. 956 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org