________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 56 प्र. भगवन् ! ज्योतिष्क देव, जो पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले पं. तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है ? इत्यादि प्रश्न / 56 उ.] गौतम ! यही पूर्वोक्त वक्तव्यता जो पृथ्वीकायिक-उद्देशक में कही है, तदनुसार कहनी चाहिए। नौ ही गमकों में भवादेश से आठ भव जानना: यावत का अन्तमुहर्त अधिक पल्योपम का आठवाँ भाग और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि और चार लाख वर्ष अधिक चार पल्योपम; इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है। 60. एवं नवसु वि गमएसु, नवरं ठिति संवेहं च जाणेज्जा। 160, इसी प्रकार नौ ही गमकों के विषय में जानना चाहिए / किन्तु यहाँ स्थिति और सबंध भिन्न (विशेष) जानना चाहिए / [गमक 1 से 9 तक] वैमानिक देवों की पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों में उत्पत्तिनिरूपरगा 61. जदि वेमाणियदेवे कि कप्पोवग०, कप्पातीतवेमाणिय ? गोयमा ! कप्पोवगवेमाणिय०, नो कप्पातीतवेमा० / {61 प्र. यदि वे (सं. पं. तिर्यञ्च) वैमानिक देवों से प्राकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, या कल्पातीत-वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? [61 उ.] गौतम ! वे कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से प्राकर उत्पन्न होते हैं, कल्पातीत वैमानिक देवों से नहीं। 62. जदि कप्पोवग० ? जाव सहस्सारकप्पोबगवेमाणियदेवेहितो वि उववज्जंति, नो प्राणय जाव नो अच्चयकप्पोवगवेमा०। [62 प्र.] भगवन् ! यदि वे कल्पोपपन्न देवों से प्राकर उत्पन्न होते हैं तो (कौन-से कल्प से)? इत्यादि प्रश्न / [62 उ.] गौतम ! वे (सौधर्म-क. वै. देव से ले कर) यावत् सहस्रार कल्पोपपन्न-वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु प्रानत (से लेकर) यावत् अच्युत कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से प्राकर उत्पन्न नहीं होते। विवेचन ---निष्कर्ष--संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च, कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं तथा कल्पोपपन्न में भी सौधर्मकल्प से लेकर सहस्रारकल्प तक के देवों से प्राकर उत्पन्न होते हैं, ग्रागे के पानत से लेकर अच्युतकल्प के देवों से नहीं।' 1. बियापण्णत्तिसुत्तं, भा. 2 (मूलपाठटिप्पणयुक्त), पृ. 955 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org