________________ चौबीसवां शतक : उद्देशक 20] / 237 से प्राकर उत्पन्न होता है, तो क्या वह पर्याप्तक संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होता है या अपर्याप्तक मंत्री मनुष्यों से? [42 उ.] गौतम ! वह पर्याप्तक और अपर्याप्तक दोनों प्रकार के संज्ञी मनुष्यों से प्राकर उत्पन्न होता है। 43. संखेज्जवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए पंचिदियतिरिक्ख० उबज्जित्तए से गं भंते ! केवति? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्त०, उक्कोसेणं तिपलिग्रोवमद्वितीएसु उवव० / [43 प्र.] भगवन् ! संख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी मनुष्य, जो पंचेन्द्रिय-तिर्यच्चों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है ? 643 उ.] गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है / 44. ते णं भंते ! 0? लद्धी से जहा एयस्सेव सन्निमणुस्सस्स पुढविकाइएसु उववज्जमाणस्स पढमगमए जाव भवादेसो त्ति / कालाएसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुत्ता, उक्कोसेणं तिन्नि पलिनोवमाइं पुवकोडिपुहत्तमभहियाइं० / [पढमो गमत्रो]। [44 प्र.) भगवन् ! वे जीव (संज्ञी मनुष्य) एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? : इत्यादि प्रश्न / [44 उ.] (गौतम ! ) पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले इसी संज्ञी मनुष्य की प्रथम गमक में कही हुई वक्तव्यता, यावत्-भवादेश तक कहनी चाहिए। कालादेश से-जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि-पृथक्त्व अधिक तीन पत्योपम, (इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है / ) [प्रथम गमक 45. सो चेव जहन्नकाल द्वितीएसु उववन्नो, एस चेव वत्तव्वया, नवरं कालाएसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं चत्तारि पुवकोडीओ चहिं अंतोमुहुर्तेहि अन्भहियानो०। [बोसो गमो ] / [45] यदि वह (संज्ञी मनुष्य) जघन्यकाल की स्थिति वाले सं. पं. तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न हो, तो उसके लिए यही वक्तव्यता कहनी चाहिए। परन्तु कालादेश से-जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि वर्ष, इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है / [द्वितीय गमक] 46. सो चेव उक्कोसकालद्वितीएसु उववन्नो, जहन्नेणं तिपलिओवमट्टिईएसु, उक्कोसेण वि तिपलिनोवमट्ठिईएसु / एसा चेव जत्तम्बया, नवरं प्रोगाहणा जहन्नेणं अंगुलपुहत्तं, उक्कोसेणं पंच अणुसयाई / ठितो जहन्नेणं मासपुहत्तं, उक्कोसेणं पुन्वकोडी। एवं अणुबंधो वि। भवावेसेणं दो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org