________________ জায়ােসালিম में विशेष यह है कि वह इसके तीसरे गमक में कहे अनुसार कहना। शेष पूर्ववत् जानना। नौवां गमक] विवेचन-कुछ स्पष्टीकरण ---(1) प्रसंज्ञी पंचेन्द्रितिर्यञ्च, जो पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है, वह प्रसंज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च से निकल कर असंख्यात वर्ष की आयु वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च में उत्पन्न हो सकता है। इसलिए कहा गया है. उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जभागठिईएत्ति / अर्थात् वह उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यज्यों में उत्पन्न होता है। (2) परिमाणादि द्वारों का कथन जिस प्रकार पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी के पृथ्वीकायिक उद्देशक में परिमाणादि द्वारों का कथन किया गया है उसी प्रकार यहाँ भी पंचेन्द्रियतियंञ्चों में होने वाले असंज्ञी का भी करना चाहिए / (3) इसका उत्कृष्ट कालादेश-पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक पल्योषम का असंख्यातवाँ भाग कहा गया है. वह इस कारण से है कि पर्वकोटि वर्ष की स्थिति वाला असंज्ञी, पूर्वकोटि की आयुवाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में सात बार उत्पन्न हातां है, इसलिए सात भवग्रहण करने में सात पूर्वकोटिवर्ष हुए। आठवें भव में पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले यौगलिक तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है। इस प्रकार पूर्वोक्त कालादेश बनता है / (3) असंख्यात वर्ष की स्थिति वाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्च असंख्यात उत्पन्न नहीं होते वे संख्या ही उत्पन्न होते हैं; क्योंकि वे संख्यात ही होते हैं। (4) जघन्य स्थिति वाला असंजी, संख्यात वर्ष की स्थिति वाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्च में ही उत्पन्न होता है / इसीलिए चौथे गमक में कहा गया है उत्कृष्ट पूर्वकोटि की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च में ही उत्पन्न होता है / इस प्रकार नौ गमकों का कथन विचारपूर्वक करना चाहिए। (5) असंज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च की परिमाणादि अवशिष्ट विषयों की वक्तव्यता तीनों मध्यम गमों अर्थात् जघन्य स्थिति वाले तीनों (4-5-6) गमों में अनुबन्धपर्यन्त (पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले के तीनों मध्यम गमकों के अनुसार) कहनी चाहिए।' पंचेन्द्रियतिर्यचों में उत्पन्न होने वाले संज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यचों के उत्पाद-परिमारणादि वीस द्वारों की प्ररूपणा 26. जदि सन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति कि संखेज्जवासा०, असंखेज्ज ? गोयमा ! संखेज्ज०, नो असंखेज्ज० / | 26 प्र] यदि वे (संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च), संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च-योनिकों से प्रा कर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से पा कर उत्पन्न होते हैं या असंख्यात वर्ष की आयु वाले सं. पं. तिर्यञ्चों से ? [26 उ.] गौतम ! बे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों से आ कर उत्पन्न होते हैं, किन्तु असंख्यात वर्ष की आयु वाले सं. पं. तिर्यञ्चों से नहीं / 30. जदि संखेज्ज० जाव कि पज्जत्तासंखेज्ज, अपज्जत्तासंखेज्ज ? दोसु वि। 1. (क) भगवती, अ. वृत्ति, पत्र 8.41 (ख) भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा. 6, पृ. 3134 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org