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________________ 207] [व्यास्याप्रज्ञप्तिसूत्र विवेचन- कुछ तथ्यों का स्पष्टीकरण-(१) ज्योतिष्क देवों में तीन ज्ञान और तीन अज्ञान नियम से कहे गए हैं, इसका कारण यह है कि इनमें असंज्ञी जीव नहीं आते, जो सम्यग्दृष्टि संज्ञी जीव पाते हैं, उनके उत्पत्ति के समय ही मतिज्ञान आदि तीन ज्ञान होते हैं और जो मिथ्यादष्टि संज्ञी आते हैं, उनके मति-अज्ञान आदि तीन अज्ञान होते हैं / (2) पल्योपम के आठवें भाग (6) की जो जघन्य स्थिति कही गई है, वह तारा-विमानवासी देवी-देवों की अपेक्षा समझनी चाहिए तथा एक लाख वर्ष अधिक एक पत्योपम की उत्कष्ट स्थिति कही गई है. बद्र चन्द-विमानवासी देवों की चाहिए।' (3) पृथ्वी कायिक जीवों में पांचों प्रकार के ज्योतिष्क देव आकर उत्पन्न होते हैं। ज्योतिष्क देवों के 5 भेद इस प्रकार हैं--(१) चन्द्र, (2) सूर्य, (3) ग्रह, (4) नक्षत्र और (5) तारा रे वैमानिक देवों की अपेक्षा पृथ्वीकायिक-उत्पत्ति-निरूपण 52. जई वेमाणियदेवेहितो उपवज्जति कि कप्पोवगवेमाणिय० कप्पातीयवेमाणिय ? गोयमा ! कप्पोवगवेमाणिय०, नो कप्पातीयवेमाणिय० / (52 प्र.] भगवन् ! यदि वे (पृथ्वीकायिक जीव), वैमानिक देवों से पाकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से पाकर उत्पन्न होते हैं अथवा कल्पातीत वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? [52 उ.] गौतम ! वे कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से पाकर उत्पन्न होते हैं, कल्पातीत से नहीं। 53. जदि कम्पोवगवेमाणिय कि सोहम्मकप्पोवगवेमाणिय० जाव प्रच्चयकापोवगवेमा० ? गोयमा! सोहम्मकप्पोक्गवेमाणिय०, ईसाणकप्पोवगवेमाणिय०, नो सणंकुमारकप्पोवगवेमाणिय० जाव नो अच्चुयकप्पोवगवेमाणिय० / [53 प्र.] (भगवन् ! ) यदि वे (पृथ्वीकायिक) कल्पोपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे सौधर्म-कल्पोपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा यावत् अच्युतकल्पोपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? [53 उ.] गौतम ! वे सौधर्म-कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से तथा ईशान-कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु सनत्कुमार-वैमानिकदेवों से लेकर यावत् अच्युत-कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते। विवेचननिष्कर्ष-(१) सौधर्म देवलोक से लेकर अच्युत देवलोक तक के देव 'कल्पोपक' या 'कल्पोपपन्न' कहलाते हैं। इनसे आगे के नौ वेयक एवं पांच अनुत्तर विमानवासी देव 'कल्पातीत' कहलाते हैं / कल्पातीत देव वहाँ से च्यवन करके पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न नहीं होते / अब रहे कल्पो. पपन्नक, उनमें से सौधर्म और ईशान कल्प के देव ही च्यव कर पृथ्वीकायिक प्रादि में उत्पन्न हो सकते --- --.-- 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, प० 831 (ख) जघन्या त्वष्टभागः / ज्योतिषकाणामधिकम् / 2. ज्योतिष्काः सूर्याश्चन्द्रमसौ-ग्रह-नक्षत्रप्रकीर्णतारकाश्च / तत्त्वार्थ सूत्र अ. 4, सू. 51,48 ----तत्वार्थसूत्र अ. 4, सू. 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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