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________________ 198] | সিফাসিরুল अह भवग्गहणाई; कालाएसेणं जहन्नेणं एकूणतीसं वाससहस्साई, उक्कोसेणं सोलसुसरं वाससयसहस्सं, एथतियं० / एवं नवसु वि गमएसु पाउकाइयठिई जाणियव्वा / [1-- गमगा] / 14 प्र.] भगवन् ! जो अप्कायिक जीव पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होता है ? [14 उ.] गौतम ! वह जघन्य अन्त महूर्त और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होता है / इस प्रकार पृथ्वीकायिक के समान अकायिक के भी नौ गमक जानना चाहिए / विशेष यह है कि अप्कायिक का संस्थान स्तिबुक (-बुलबुले) के आकार का होता है / स्थिति और अनुबन्ध जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष है। इसी प्रकार तीनों गमकों में जानना चाहिए / तीसरे, छठे, सातवें, आठवें और नौवें गमक में संवेध-भव की अपेक्षा से जघन्य भव होते हैं। तीसरे गमक में काल की अपेक्षा से-जघन्य अन्तर्मुहर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक लाख सोलह हजार वर्ष; इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है / छठे गमक में काल की अपेक्षा से---जघन्य अन्तर्मुहुर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक 88 हजार वर्ष, इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है / सातवें गमक मे काल की अपेक्षा से-जघन्य अन्तमहत अधिक सात हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक लाख सोलह हजार वर्ष तक यावत् गमनागमन करता है। आठवें गमक में काल की अपेक्षा से -जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त अधिक सात हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक 28 हजार वर्ष तक यावत् गमनागमन करता है। नौवें गमक में भवादेश से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करता है तथा काल की अपेक्षा से-जघन्य उनतीस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक लाख सोलह हजार वर्ष; इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है / इस प्रकार नौ ही गमकों में अप्कायिक की स्थिति जाननी चाहिए। (गमक 1 से 9 तक) विवेचन-अकाय के भेद-सूक्ष्म और बादर अप्काय में से प्रत्येक के पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से चार प्रकार होते हैं। भवादेश से संवेध का कथन-भव की अपेक्षा से सभी गमकों में जघन्यतः दो भवग्रहण प्रसिद्ध है, किन्तु उत्कृष्ट में विशेषता है / यथा तीसरे, छठे, सातवें, आठवें और नौवें गमक में उत्कृष्टतः संवेध पाठ भवग्रहण करते हैं। शेष पहले, दूसरे, चौथे और पांचवें गमक में उत्कृष्ट असंख्यात भव होते हैं; क्योंकि इन चार गमकों में किसी भी पक्ष में उत्कृष्ट स्थिति नहीं है।' कालादेश से कथन-काल की अपेक्षा से-- तीसरे गमक में जघन्य 22,000 वर्ष कहे गए हैं, क्योंकि उत्कृष्ट स्थिति इतनी ही है और अन्त हर्त्त जो अधिक कहा गया है, वह वहाँ पृथ्वीकायिक वाले अकायिक की जघन्यकाल-स्थिति की विवक्षा से कहा गया है। इसी गमक में कालापेक्षया उत्कृष्ट 1,16,000 वर्ष कहे गए हैं / यहाँ उत्कृष्ट स्थिति बाले पृथ्वीकायिकों के चार भवों के 88,000 वर्ष होते हैं, इसी प्रकार औधिक में उत्कृष्ट स्थिति वाले अप्कायिक जीवों के चार भवों के 28,000 वर्ष होते हैं। इन दोनों को मिलाने से कुल एक लाख सोलह हजार वर्ष होते हैं / 1. भगवती. अ. बृत्ति, पत्र 825 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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