________________ चौवीसवां शतक : उद्देशक 2] [173 उत्पन्न हो तो उसके भी तीनों गमक जघन्यकाल की स्थिति वाले तिर्यञ्चयोनिक के समान कहने चाहिए / विशेषता यह है कि तीनों ही गमकों में शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट सातिरेक पांच सौ धनुष की होती है। शेष सब वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए / [सू. 23, गमक 4-5-6] 24. सो चेव अप्पणा उक्कोसकाल द्वितीयो जामो, तस्स वि ते चेव पच्छिल्लगा तिन्नि गमगा भाणियव्वा, नवरं सरीरोगाणा तिसु वि गमएस जहन्नेणं तिन्नि गाउयाई, उक्कोसेण वि तिग्नि गाउयाई / अवसेसं तं चैव। [7-6 गमगा] / [24] यदि वह स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो तो उसके विषय में भी पूर्वोक्त अन्तिम तीनों गमक कहने चाहिए। विशेष यह है कि तीनों गमकों में शरीरावगाहना जधन्य और उत्कृष्ट तीन गाऊ की होती है / शेष सब कथन पूर्ववत् है। सू. 24, गमक 7-8-6] विवेचन कुछ स्पष्टीकरण --(1) असंख्यातवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों की तीन पल्योपम की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पत्ति का कथन देवकुरु आदि के यौगलिक मनुष्यों की अपेक्षा से हिए; क्योंकि वे ही अपनी आयु के सदृश देवायु का उत्कृष्ट बन्ध करते हैं / (2) प्रादि के तीनों गमकों में अवगाहना-सम्बन्धी-शरीरावगाहना के विषय में औधिक मनुष्य का औधिक असरकमारों में उत्पन्न होने सम्बन्धी प्रथम गमक है और औधिक मनुष्य का जघन्य स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होने सम्बन्धी द्वितीय गमक है / इनमें से औधिक असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य की जघन्य सातिरेक 500 धनुष की अवगाहना होती है, यह सातवे कुलकर या उससे पहले होने वाले यौगलिक मनुष्य की अपेक्षा से समझनी चाहिए तथा उसकी उत्कृष्ट अवगाहना तीन गाऊ की होती है, जो देवकुरु आदि के योगलिक मनुष्य की अपेक्षा से समझनी चाहिए। यह प्रथम गमक में होता है, 1 दूसरे गमक में भी इसी तरह दोनों प्रकार की अवगाहना समझनी चाहिए। तीसरे गमक में अवगाहना तीन गाऊ की बताई है, क्योंकि यही तीन पल्योपमरूप उत्कृष्ट स्थिति में उत्पन्न होता है और वह अपनी उत्कृष्ट अायु के समान ही देवायु का बन्धक होता है।' असुरकुमारों में उत्पन्न होनेवाले पर्याप्त-असंख्येयवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्य में उपपातपरिमाणादि बीस द्वारों को प्ररूपणा 25. जइ संखेज्जवासाउयसन्निमणुस्सेहितो उववज्जइ कि पज्जत्तसंखेज्जवासाउय० अपज्जतसंखेज्जवासाउय? गोयमा ! पज्जत्तसंखेज्ज०, नो अपज्जत्तसंखेज्ज० / [25 प्र.] भगवन् ! यदि वह (असुरकुमार) संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से माकर उत्पन्न होता है, तो क्या वह पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों से प्राकर उत्पन्न होता है, अथवा अपर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों से ? [25 उ.] गौतम ! वह पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होता है, अपर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों से नहीं। 1. (क) भगवतीसूत्र (हिन्दी विवेचन पं. घेवरचन्दजी) भा. 6, पृ. 3051 (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 821 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org