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________________ 154] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [92 प्र. भगवन् ! यदि वह नैरयिक, मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है, तो क्या वह संज्ञी मनुष्यों में से उत्पन्न होता है या असंज्ञी मनुष्यों में से ? [12 उ.] गौतम ! वह संज्ञी मनुष्यों में से उत्पन्न होता है, असंज्ञी मनुष्यों में से नहीं। 13. जति सत्रिमणुस्सेहितो उववज्जति कि संखेज्जवासाउयसन्निमणुस्सेहितो उववति, असंखेज्जवा० जाव उववज्जति ? गोयमा ! संखेज्जवासाउयसन्निमणु, नो असंखेज्जवासाउय जाव उववति / [63 प्र.] भगवन् ! यदि वह संज्ञी मनुष्यों में से पा कर उत्पन्न होता है तो क्या संख्येय वर्ष की आयु वाले संज्ञो मनुष्यों में से उत्पन्न होता है, अथवा असंख्येय वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों में से ? [93 उ.] गौतम ! वह संख्येय वर्ष की आयु वाले संजी मनुष्यों में से उत्पन्न होता है, असंख्येय वर्ष की आयु वाले संज्ञो मनुष्यों में से नहीं / 14. जदि संखेज्जवासा० जाव उववज्जति कि पज्जत्तसंखेज्जवासाउय०, अपज्जत्तसंखेज्जवासाउय? गोयमा ! पज्जत्तसंखेज्जवासाउय०, नो अपज्जत्तसंखेज्जवासाउय० जाव उववति / [E4 प्र.] भगवन् ! यदि वह संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों में से पाकर उत्पन्न होता है, तो क्या वह पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों में से उत्पन्न होता है, या अपर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों में से ? [94 उ.] गौतम ! वह पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों में से उत्पन्न होता है, अपर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों में से नहीं / 15. पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसणिमणुस्से भंते ! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए से गं भंते ! कतिसु पुढवीसु उववज्जेज्जा? गोयमा! सत्तसु पुढवीसु उववज्जेज्जा, तं जहा-रयणप्पभाए जाब आहेसत्तमाए। [95 प्र.] भगवन् ! संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त मनुष्य, जो नरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितनी नरकपृथ्वियों में उत्पन्न होता है ? [95 उ.] गौतम ! वह सातों ही नरकश्वियों में उत्पन्न होता है। यथा-रत्नप्रभा में, यावत् अधःसप्तम नरकपृथ्वी में / विवेचन–निष्कर्ष-संख्यात वर्ष की आयु वाला, पर्याप्त संज्ञी मनुष्य सातों ही नरकपृथ्वियों में से किसी में भी उत्पन्न हो सकता है।' 1. वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. 2 (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त), पृ. 917-918 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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