________________ चौवीसवां शतक : उद्देशक 1 [149 में जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति जितने काल की हो, उसे उसी क्रम से चार गुणी करनी चाहिए। जैसे—बालुकाप्रभापृथ्वी में उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपम की है; उसे चार गुणा करने से अट्ठाईस सागरोपम होती है। इसी प्रकार पंकप्रभा में चालीस सागरोपम की, धूमप्रभा में अड़सठ सागरोपम को और तमःप्रभा में 88 सागरोपम की स्थिति होती है / संहनन के विषय में बालुकाप्रभा में बज्रऋषभनाराच से कोलिका सहनन तक पांच संहनन वाले जाते हैं। पंकप्रभा में आदि के चार संहनन वाले, धूमप्रभा में प्रथम के तीन संहनन, तमः प्रभा में प्रथम के दो संहनन वाले नैरयिक रूप में उत्पन्न होते हैं। यथा -वजऋपभनाराच और ऋषभनाराच संहनन वाले / शेप सब कथन पूर्ववत् समझना चाहिए। विवेचन-शर्कराप्रभा सम्बन्धी बक्तव्यता--परिमाण, संहनन आदि की जो वक्तव्यता रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होने वाले ने रयिक को कही गई है। वहीं शर्कराप्रभा के सम्बन्ध में जाननी चाहिए। स्थिति सम्बन्धी कथन में अन्तर---शर्कराप्रभा में संजी जीव की अपेक्षा जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त अधिक एक सागरोपम की और उत्कृष्ट स्थिति 12 मागरोपम की कही गई है, क्योंकि शर्कराप्रभा में उत्कृष्ट स्थिति तीन सागरोपम की हैं, उसे चार से गुणा करने पर बारह सागरोपम होती है। रत्नप्रभा में जघन्य स्थिति 10 हजार वर्ष की तथा उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम की है। शर्कराप्रभा आदि नरकपृथ्वियों की उत्कृष्ट स्थिति क्रमशः 3, 7, 10, 13, 22 और 33 सागरोपम की है। पूर्व-पूर्व की नरकपृथ्वियों में जो उत्कृष्ट स्थिति होती है. वही आगे-आगे की नरकपृथ्वियों में जघन्य स्थिति होती है। अत: शर्कराप्रभा प्रादि में स्थिति और कायसंवेध के विषय में 'सागरोपम' कहना चाहिए। _ छठी नरकपृथ्वी तक नौ ही गमकों की वक्तव्यता रत्नप्रभानरकपृथ्वी के गमकों के समान है। जिस नरक की जितनी उत्कृष्ट स्थिति है, उसका उत्कृष्ट कायसवेध उससे चार गुणा है। जैसे-बालुकाप्रभा नरकपृथ्वी की उत्कृष्ट स्थिति 7 सागरोपम की है। उसे चार से गुणा करने पर अट्ठाईस सागरोपम उत्कृष्ट कायसंवेध होता है। इसी तरह आगे-आगे की नरकगृध्वियों में समझना चाहिए।' छठी नरक तक संहननादि विशेष---पहली और दूसरी नरकपृथ्वी में छहों संहनन वाले जीव जाते हैं। तत्पश्चात् आगे-मागे की नरकवियों में एक-एक संहनन कम होता जाता है। इस दृष्टि से तीसरी नरकपृथ्वी में पांच संहनन वाले, चौथी में चार संहनन वाले, पांचवीं में तीन संहनन वाले और छठी नरकपृथ्वी में दो संहनन वाले जीव जाते हैं।' 1. भगवती. (हिन्दी विवेचनयुक्त) भाग 6, पृ. 3019 2. वही, पृ. 3019 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org