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________________ पढमे तालवग्गे : दस उद्देसगा प्रथम 'ताल' वर्ग : दश उद्देशक इक्कीसवें शतक के प्रथमवर्गानुसार प्रथम तालवर्ग का निरूपरण 2. रायगिहे जाव एवं क्यासि[२] राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा 3. अह भंते ! ताल-तमाल-तक्कलि-तेतलि-साल-सरलासारगल्लाणं जाव केयति-कलिकदलि-चम्मरुक्ख-गुतरुक्ख-हिंगुरुक्ख-लवंगरुक्ख-पूयफलि-खज्जूरि-नालिएरोणं, एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमति ते णं भंते ! जीवा कमोहितो उववज्जति ? 0 एवं एत्थ वि मूलाईया दस उद्देसगा कायव्वा जहेव सालोणं (स० 21 व० 1 उ० 1-10), नवरं इमं नाणतं-मूले कंदे खंधे तयाए साले य, एएसु पंचसु उद्देसगेसु देवो न उववज्जति; तिण्णि लेसाप्रो; ठिती जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं दसवाससहस्साई; उरिल्लेसु पंचसु उद्देसएसु देवो उववज्जति; चत्तारि लेसानो; ठिती जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बासपुहत्तं; प्रोगाहणा मूले कंदे धणुपुहत्तं, खंधे तयाए साले य गाउयपुहत्तं, पवाले पत्ते य धणुपुहत्तं, पुप्फे हत्थपुहत्तं, फले बीए य अंगुलपुहत्तं, सव्वेसि जहन्नेणं अंगुलस्स प्रसंखेज्जइभागं / सेसं जहा सालोणं / __ एवं एए दस उद्देसगा। // बावीसइमे सए : पढमो बग्गो समत्तो // 22-1 // [3 प्र.] भगवन् ! ताल (ताड़), तमाल, तक्कली, तेतली, शाल, सरल (देवदार), सारगल्ल, यावत्-केतकी (केवड़ा), कदली (केला), चर्मवृक्ष, गुन्दवृक्ष, हिंगुवृक्ष, लवंगवृक्ष, पूगफल (सुपारी), खजर और नारियल, इन सबके मुल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [3 उ.] (गौतम ! ) (इक्कीसवें शतक व. 1 उ. 1 सू. 1-10 में अंकित) शालिवर्ग के दश उद्देशकों के समान यहाँ भी वर्णन समझना चाहिए / विशेष यह है कि इन वृक्षों के मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वचा और शाखा, इन पांचों अवयवों में देव आकर उत्पन्न नहीं होते, इसलिए इन पांचों में तीन लेश्याएँ होती हैं, शेष पांच में देव उत्पन्न होते हैं, इसलिए उनमें चार लेश्याएँ होती हैं। पूर्वोक्त पांच की स्थिति जघन्य अन्तर्महत की और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की होती है, अन्तिम पांच की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहर्त की और उत्कृष्ट वर्ष-पृथक्त्व की होती है। मुल और कन्द की अवगाहना धनुष-पृथक्त्व की और स्कन्ध, त्वचा एवं शाखा की गव्यूति (गाऊ-दो कोस)-पृथक्त्व की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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