________________ पंचमे 'उक्खु' वग्गे : दस उद्देसगा पंचम 'इक्षु' वर्ग : दश उद्देशक चतुर्थ वंशवर्गानुसार पंचम इक्षुवर्ग का निरूपण 1. अह भंते ! उक्खु - उक्खुवाडिया - वोरण-इक्कड-भमास-सुठि-सर-वेत्त-तिमिर-सतबोरगनलाणं, एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए बक्कमंति० ? एवं जहेव बंसवग्गो तहेब एस्थ वि मूलाईया दस उद्देसगा नवरं खंधुद्देसे देवो उववज्जति / चत्तारि लेसानो। सेसं तं चेव / ॥एगवीसइमे सए : पंचमो वग्गो समत्तो॥ 21-5 // [1 प्र.] भगवन् ! इक्षु (गन्ना), इक्षुवाटिका, वीरण, इक्कड़, भमास, सुंठि, शर, वेत्र (बेंत), तिमिर, सतबोरग, (शतपर्वक) और नल, इन सब वनस्पतियों के मूल रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से पा कर उत्पन्न होते हैं ? [1 उ.] जिस प्रकार वंशवर्ग (चतुर्थ) के मूलादि दस उद्देशक कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ भी मूलादि दस उद्देशक कहने चाहिए / विशेष यह है कि स्कन्धोद्देशक में देव भी उत्पन्न होते है, अतः उनके चार लेश्याएँ होती हैं (इत्यादि कहना चाहिए ) / शेष पूर्ववत् / // पंचम 'इक्षु' वर्ग समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org