________________ चउत्थे 'वंस' वग्गे : दस उद्देसगा चतुर्थ 'वंश' वर्ग : दश उद्देशक प्रथम शालिवर्ग के अनुसार चतुर्थ वंशवर्ग का निरूपण 1. अह भंते ! वंस-वेणु-कणग-कक्कावंस-चारुवंस-उडाकुडा'-विमा कंडा-वेणुया-कल्लाणीणं, एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति० ? एवं एत्थ वि मूलाईया दस उद्देसगा जहेव सालीणं, नवरं देवो सव्वस्थ वि न उववज्जति / तिनि लेसाओ। सम्वत्थ वि छव्वीसं भंगा। सेसं तं चेव / // एगवोसइमे सए : चउत्थो वग्गो समत्तो // 21-4 // [1 प्र.] भगवन् ! बांस, वेणु, कनक, कविंश, चारुवंश, उड़ा (दण्डा), कुडा, विमा, कण्डा, वेणुका और कल्याणी, इन सब वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से प्रा कर उत्पन्न होते हैं ? [1 उ.] (गौतम ! ) यहाँ भी पूर्ववत् शालि-वर्ग के समान मूल आदि दश उद्देशक कहने चाहिए / विशेष यह है कि देव यहाँ किसी स्थान में उत्पन्न नहीं होते / अतः सर्वत्र तीन लेश्याएँ और उनके छब्बीस भंग जानने चाहिए। शेष सब पूर्ववत् / // चतुर्थ वर्ग समाप्त / 1. पाठान्तर-'दंडा' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org