________________ 58] [व्याख्याप्राप्तिसूत्र [56 उ.] गौतम ! सबसे थोड़े चतुरशीति-नो-चतुशीति-समजित सिद्ध हैं, उनसे चतुरशीतिसमजित सिद्ध अनन्तगुणे हैं, उनसे नो-चतुरशीति सिद्ध अनन्तगुणे हैं / हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर यावत्-गौतम स्वामी विचरते हैं। // वीसवाँ शतक : दशम उद्देशक समाप्त // / वीसवां शतक सम्पूर्ण / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org