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________________ वीसवां शतक : उद्देशक 10] [87 तेयासी तक एक साथ उत्पन्न हों, के नो-चतुरशीति-सजित कहलाते हैं। शेष शब्दों का अर्थ सुगम है।' सिद्धों में प्रारम्भ के तीन भंग क्यों और कैसे ? सिद्ध भगवान् एक समय में 108 से अधिक मुक्त नहीं होते, इसलिए पिछले दो भंग-~-अनेक चतुरशीति-समर्जित, एवं अनेक चतुरशीति-नोचतुरशीति-साजत नहीं पाए जाते / प्रारम्भ के पूर्वोक्त तीन भंग पाए जाते हैं। परन्तु तीसरे भंग-(चतुरशीति-नोचतुरशीति-समजित) में 'नो-चतुरशीति' में एक से लेकर चौबीस तक ही लेने चाहिए, क्योंकि सिद्ध भगवान् एक समय में एक साथ अधिक से अधिक 108 ही सिद्ध होते हैं, इसलिए चौरासी में 24 संख्या को जोड़ने से 108 हो जाते हैं। अत: यहाँ नोचतुरशीति में उत्कृष्ट संख्या 83 न लेकर 24 तक ही लेनी चाहिए। चतुरशीति-नोचतुरशोति इत्यादि से समजित चौवीस वण्डकों और सिद्धों का अल्पबहुत्व निरूपण 55. एएसि णं भंते ! नेरतियाणं चुलसीतिसमज्जियाणं नोचुलसीतिसमज्जियाणं ? सन्वेसि अप्पाबहुगं जहा छक्कसमज्जियाणं जाव वेमाणियाणं, नवरं अभिलाबो चुलसीतयो / [55 प्र] भगवन् ! चतुरशीति-समजित आदि नैरयिकों में कौन किनसे यावत् विशेषाधिक हैं ? [55 उ.] गोतम ! चतुरशीति-समजित नोचतुरशीति-समजित इत्यादि-विशिष्ट नैरयिकों का अल्प-बहुत्व षट्क सजित आदि के समान समझना चाहिए। यावत् वैमानिक-पर्यन्त इसी प्रकार कहना चाहिए / विशेष यह है कि यहाँ 'षट्क' के स्थान में 'चतुरशीति' शब्द कहना चाहिए। 56. एएसि गं भंते ! सिद्धाणं चलसीतिसमज्जियाणं, नोचलसीतिसमज्जियाणं, चुलसीतीए य नोचुलसीतीए य समज्जियाणं कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा ? | गोयमा ! सम्वत्थोवा सिद्धा चुलसीतोए य नोचुलसोतीए य समज्जिया, त्रुलसीतिसमज्जिया अणंतगुणा, नोचुलसीतिसमज्जिया अणंतगुणा।। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरइ / / / वीसइमे सए : दसमो उद्देसनो समत्तो।।२०-१०॥ // वीसइमं सयं समत्तं // 20 // [56 प्र.] भगवन् ! चतुरशीति-समजित, नो-चतुरशीति-समजित तथा चतुरशीति-नोचतुरशीति-समजित सिद्धों में कौन किनसे यावत् विशेषाधिक हैं ? 1. भगवती. विवेचन (6. घेवरचंदजी), पृ. 2939 2. वही, पृ. 2939 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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