________________ नवमो उद्देसओ : 'चारण' नौवाँ उद्देशक : चारण (-मुनि सम्बन्धी) चारण मुनि के दो प्रकार : विद्याचारग और जंघाचरण 1. कतिविधा णं भंते ! चारणा पन्नत्ता? गोयमा ! दुविहा चारणा पन्नत्ता, तं जहा-विज्जाचारणा य जंघाचारणा य / [1 प्र.] भगवन् ! चारण कितने प्रकार के कहे हैं ? [1 उ.] गौतम ! चारण दो प्रकार के कहे हैं, यथा-- विद्याचारण और जंधाचारण / विवेचन-चारण मुनि : स्वरूप और प्रकार लब्धि के प्रभाव से आकाश में अतिशय गमन करने की शक्ति वाले मुनि को 'चारण' कहते हैं। चारण मुनि दो प्रकार के होते हैं—विद्याचारण और जंघाचारण। पूर्वगत श्रुत (शास्त्रज्ञान) से तीन गमन करने की लब्धि को प्राप्त मुनि 'विद्याचारण' कहलाते हैं और जंघा के व्यापार से गमन करने की लब्धि बाले मुनिराज को जंघाचारण कहते हैं।' विद्याचारपलब्धि समुत्पन्न होने से विद्याचारण कहलाता है 2. से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चति--विज्जाचारणे विज्जाचारणे? गोयमा ! तस्स णं छठंछट्टेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं विज्जाए उत्तरगुणाद्ध खममाणस्स विजाचारणलद्धी नाम लद्धी समुपज्जति, सेतेणठेणं जाव विज्जाचारणे विज्जाचारणे / [2 प्र.] भगवन् ! विद्याचारण मुनि को 'विद्याचारण' क्यों कहते हैं ? [2 उ.] अन्तर-(व्यवधान) रहित छ?-छ? (बेले-बेले) के तपश्चरणपूर्वक पूर्वश्रुतरूप विद्या द्वारा उत्तरगुणलब्धि (तपोलब्धि)को प्राप्त मुनि को विद्याचारणलब्धि नाम की लब्धि उत्पन्न होती है। इस कारण से यावत् वे विद्याचारण कहलाते हैं। विवेचन-विद्याचारणलब्धि की प्राप्ति का उपाय--विद्याचारणलब्धि की प्राप्ति उसी मुनि को होती है, जिसने पूर्वो का विधिवत अध्ययन किया हो तथा जिसने बीच में व्यवधान किये बिना लगातार बेले-बेले की तपस्या को हो एवं जिसे उत्तरगुण अर्थात् पिण्डविशुद्धि आदि उत्तरगुणों में 1. (क) चरणं--गमनमतिशयवदाकाशे एषामस्तीति चारणाः। विद्या-श्रुत, तरूच पूर्वगतं, तत्कृतोपकाराप्रचारणा विद्याचारणाः / जंधाव्यापारकृतोपकाराश्चारणा जंघाचारणाः / -भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 794 (ख) 'अइसय-चरण-समत्था, जंधा-विज्जाहिं चारणा मुणग्रो। . जंघाहि जाइ पढमो, निस्सं काउं रविकरे वि // 1 // ' -प्र. वृत्ति, पत्र 794 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org