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________________ 14] व्याख्याप्राप्तिसूत्र काला, एकदेश नीला, अनेकदेश लाल, एकदेश पीला और. एकदेश श्वेत होता है, (6) कदाचित् एकदेश काला, एकदेश नीला, अनेकदेश लाल और एकदेश पीला तथा अनेकदेश श्वेत होता है, (7) कदाचित् एकदेश काला, एकदेश नीला, अतेकदेश लाल, अनेकदेश पीला और एकदेश श्वेत होता है, (8) कदाचित् एकदेश काला, अनेकदेश नीला, एकदेश लाल, एकदेश पीला और एकदेश श्वेत होता है, (9) कदाचित् एकदेश काला, अनेकदेश नीला, एकदेश लाल, एकदेश पीला और अनेकदेश श्वेत होता है, (10) कदाचित् एकदेश काला, अनेकदेश नीला, एकदेश लाल, अनेकदेश पीला और एकदेश शुक्ल होता है, (11) कदाचित् एकदेश काला, अनेकदेश नीला, अनेकदेश लाल, एकदेश पीला और एक देश श्वेत होता है, (12) कदाचित् अनेकदेश काला, एकदेश नीला, एकदेश लाल, एकदेश पीला और एकदेश श्वेत होता है, (13) कदाचित् अनेकदेश काला, एकदेश नीला, एकदेश लाल, एकदेश पीला और अनेकदेश श्वेत होता है, (14) कदाचित् अनेकदेश काला, एकदेश नीला, एकदेश लाल, अनेकदेश पीला और एकदेश श्वेत होता है, (15) कदाचित् अनेकदेश काला, एकदेश नीला, अनेकदेश लाल, एकदेश पीला और एकदेश श्वेत होता है, (16) कदाचित् अनेकदेश काला, अनेकदेश नीला, एकदेश लाल, एकदेश पीला और एकदेश शुक्ल होता है / इस प्रकार सोलह भंग होते हैं / अर्थात्-असंयोगी 5, द्विकसंयोगी 40, त्रिसंयोगी 80, चतु:संयोगी 75 और पंचसंयोगी 16 भंग होते हैं / कुल मिलाकर वर्ण के 216 भंग होते हैं / गन्ध के छह भंग चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के समान होते हैं। रस के 216 भंग इसी के वर्ण के समान कहने चाहिए। स्पर्श के भंग 36 चतुःप्रदेशी स्कन्ध के समान कहने चाहिये। विवेचन--सप्त-प्रदेशी स्कन्ध में वर्णादि-विषयक चार सौ चौहत्तर भंग-सप्तप्रदेशी स्कन्ध के विषय में वर्ण के 216, गन्ध के 6, रस के 216 और स्पर्श के 36, यों कुल मिला कर 474 भंग होते हैं। पष्टप्रदेशी स्कन्ध में वर्णादि-भंगों का निरूपण 8. अट्ठपदेसियरस णं भंते ! खंधे० पुच्छा। गोयमा ! सिय एगवणे जहा सत्तपदेसियस्स जाव सिय चतुफासे पन्नत्ते। जति एगवण्णे, एवं एगवण्ण-दुवण्ण-तिवण्णा जहेव सत्तपएसिए / जति चउवणे-सिय कालए य, नीलए य, लोहियए य, हालिद्दए य१; सिय कालए य, नीलए य, लोहियए य, हालिहगा य 2; एवं जहेव सत्तपदेसिए जाव सिय कालगा य, नीलगा य, लोहियगा य, हालिद्दगे य 15, सिय कालगा य, नीलगाय, लोहियगा य, हालिद्दगा य 16; एए सोलस भंगा। एवमेते पंच चउक्कगसंजोगा; सत्यमेते असीति भंगा 80 / जति पंचवण्णे-सिय कालए य, नीलए य, लोहियए य, हालिद्दए य, सुक्किलए य१, सिय कालगे य, नीलो य, लोहियगे य, हालिदए य, सुक्किलगा य 2; एवं एएणं कमेणं भंगा चारेयव्या जाव सिय कालए य, नीलगा य, लोहियगा य, हालिद्दगा य, सुक्किलगे य 15-- एसो पन्नरसमो भंगो; सिय कालगाय, नोलए य, लोहियए य, हालिइए य, सुक्किलए य 16, सिय कालगा. य, नीलए य, लोहियए य, हालिद्दए य, सुक्किलगा य 17; सिय कालगा य, नीलए य, लोहियए य हालिद्दगा य, मुक्किलए य 18; सिय कालगा य, नीलगे य, लोहियए य, हालिद्दगा य, सृषिकलगा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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