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________________ 32] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र और अनेकदेश पीला होता है (3) कदाचित् एकदेश काला, एकदेश नीला, अनेकदेश लाल और एकदेश पीला होता है, (4) कदाचित् एकदेश काला, एकदेश नीला, अनेकदेश लाल और अनेकदेश पीला होता है, (5) कदाचित् एकदेश काला, अनेकदेश नीला, एकदेश लाल और एकदेश पीला होता है, (6) कदाचित् एकदेश काला, अनेकदेश नीला, एकदेश लाल और अनेकदेश पीला होता है, (7) कदाचित् एकदेश काला अनेकदेश नीला, अनेकदेश लाल और एकदेश पीला होता है। (8) कदाचित् अनेकदेश काला, एकदेश नीला, एकदेश लाल और एकदेश पीला होता है; (6) कदाचित अनेकदेश काला. एकदेश नीला, एकदेश लाल और अनेकदेश पीला होता अथवा (10) कदाचित् अनेकदेश काला, एकदेश नीला, अनेकदेश लाल और एकदेश पीला होता है, अथवा (11) कदाचित् अनेकदेश काला अनेकदेश नीला, एकदेश लाल और एकदेश पीला होता है / इस प्रकार ये चतुःसंयोगी ग्यारह भंग होते हैं / यों पांच चतुःसंयोग कहने चाहिए। प्रत्येक चतुःसंयोग में ग्यारह-ग्यारह भंग होते हैं / सब मिलकर ये 1145 = 55 भंग होते हैं। यदि वह पांच वर्ण वाला होता है, तो (1) कदाचित् एकदेश काला, एकदेश नीला, एकदेश लाल, एकदेश पीला और एकदेश श्वेत होता है, (2) कदाचित एकदेश काला, एकदेश नीला, एकदेश लाल, एकदेश पीला और अनेकदेश श्वेत होता है, (3) कदाचित् एकदेश काला, एकदेश नीला, एकदेश लाल, अनेकदेश पीला और एकदेश श्वेत होता है, (4) कदाचित् एकदेश काला, एकदेश नीला, अनेकदेश लाल, एकदेश पीला और एकदेश श्वेत होता है, (5) कदाचित् एकदेश काला, अनेकदेश नीला, एकदेश लाल, एकदेश पीला और एकदेश श्वेत होता है, अथवा (6) कदाचित् अनेकदैश काला, एकदेश नीला, एकदेश लाल, एकदेश पीला और एकदेश श्वेत होता है / इस प्रकार ये छह भंग कहने चाहिए। इस प्रकार असंयोगी 5, द्विक संयोगी 40, त्रिक-संयोगी 80, चतुःसंयोगी 55 और पंचसंयोगी 6, यो सब मिला कर वर्णसम्बन्धी 186 भंग होते हैं। गन्धसम्बन्धी छह भंग पंचप्रदेशी स्कन्ध के समान (समझने चाहिए।) रससम्बन्धी 186 भंग इसी के वर्णसम्बन्धी भंग के समान (कहने चाहिए।) स्पर्शसम्बन्धी 36 भंग चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के समान जानने चाहिए। विवेचन --षट्प्रदेशी-स्कन्ध के वर्णादिविषयक चार-सौ चौदह भंग-पट-प्रदेशीस्कन्ध के वर्ण के 186, गन्ध के 6, रस के 186, और स्पर्श के 36, यों कुल मिलाकर 414 भंग होते हैं। सप्तप्रदेशी-स्कन्ध में वर्णादि भंगों का निरूपण 7. सत्तपएसिए णं भंते ! खंधे कतिवणे ? जहा पंचपएसिए जाव सिय चउफासे पन्नत्ते / जति एगवण्णे, एवं एगवण्ण-दुवण्ण-तिवण्णा जहा छप्पएसियस्स / जइ चउवणे --सिय कालए य, नीलए य, लोहियए, य, हालिद्दए य 1; सिय कालए य, नीलए य, लोहियए य, हालिहगा य 2; सिय कालए य, नीलए य, लोहियगा य, हालिद्दए य 3; एवमेते चउक्कगसंजोएणं पन्नरस भंगा भाणियन्या जाव सिय कालगाय, नीलगाय, लोहियगा य, हालिद्दए य 15 / एवमेते पंच चउक्का संजोगा नेयव्वा; एक्केक्के संजोए पन्नरस भंगा-सवमेते पंचसत्तरि भंगा भवंति / जति पंचवणे-सिय कालए य, नीलए य, लोहियए य, हालिद्दए य, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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