________________ तइओ उद्देसओ : 'पाणवहे तृतीय उद्देशक : प्राणवध (प्रादि-विषयक) आत्मा में प्राणातिपात से लेकर अनाकारोपयोग धर्म तक का परिणमन 1. अह भंते ! पाणातिवाए मुसावाए जाव मिच्छादसणसल्ले, पाणातिवायवेरमणे नाव मिच्छदसणसल्लविवेगे, उम्पत्तिया जाव पारिणामिया, उग्गहे जाव धारणा, उहाणे, कम्मे, बले, वीरिए, पुरिसक्कारपरक्कमे, नेरइयत्ते, असुरकुमारत्ते जाव वेमाणियत्ते, नाणावरणिज्जे जाव अंतराइए, कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा, सम्मदिट्ठी 3+ चक्खुदंसणे 4,x भाभिणिबोहियणाणे जाव विभंगनाणे, आहारसन्ना 4, // प्रोरालियसरीरे 5,* मणोजोए 3, सागारोवयोगे प्रणागारोवयोगे, जे यावन्ने तहप्पगारा सव्वे ते णऽनत्य आताए परिणमंति? हंता, गोयमा ! पाणातिवाए जाव ते णऽन्नत्थ प्राताए परिणमंति। [1 प्र.] भगवन् ? प्राणातिपात, मृषावाद यावत् मिथ्यादर्शन-शल्य, प्रौत्पत्तिकी यावत् पारिणामिकी बद्धि, अवग्रह यावत धारणा, उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रमः नरयिकत्व, असुरकुमारत्व यावत् बैमानिकत्व, ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायकर्म, कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सम्यम्-मिश्यावृष्टि, चक्षुदर्शन यावत् केवलदर्शन, प्राभिनिबोधिकज्ञान यावत् विभंगज्ञान, प्राहारसंज्ञा यावत् परिग्रहसंज्ञा, औदारिक शरीर यावत् कार्मण शरीर, मनोयोग, वचनयोग, काययोग तथा साकारोपयोग एवं अनाकारोपयोग; ये सब और इनके जैसे अन्य धर्म; क्या प्रात्मा के सिवाय अन्यत्र परिणमन नहीं करते? [1 उ.] हाँ, गौतम ! प्राणातिपात से लेकर यावत् प्रनाकारोपयोग तक सब धर्म, प्रात्मा के सिवाय अन्यत्र परिणमन नहीं करते। विवेचन-प्राणातिपात प्रादि प्रात्मा में परिणत होते हैं या अन्यत्र ?-प्राणातिपात प्रादि सभी आत्मा के पर्याय होने से प्रात्मा को छोड़ कर अन्यत्र परिणमन नहीं करते; क्योंकि --- - + 3 का अंक शेष दो दृष्टियों-मिथ्याष्टि एवं सम्यगमिथ्यादृष्टि का सूचक है। x 4 का अंक शेष तीन दर्शन-प्रचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवल दर्शन का सूचक है। D'जाव' पद से यहाँ 'सुयनाणे, ओहिनाणे, मणपज्जवनाणे, केवलनाणे, मतिअनाणे, सुयअनाणे' यह पाठ समझना चाहिए। // 4 का अंक शेष सीन–'निहासना, भयसन्ना मेहुणसन्त्रा' का सूचक है। * 5 का अंक 'वेउठिबयसरीरे, आहारगसरीरे, तेयगसरीरे, कम्मगसरीरे' पाठ का सूचक है। का अंक-'बइजोगे कायजोगे' इस पाठ का सूचक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org