________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र सशरीरी / नायक-कर्मों का नेता / अन्तरात्मा--जो अन्तः अर्थात् मध्यरूप आत्मा हो, शरीररूप न हो, वह / ये सब जीव के पर्यायवाची शब्द हैं।' पुदगलास्तिकाय के पर्यायवाची शब्द 8. पोग्गलस्थिकायस्स णं भंते ! पुच्छा। गोयमा ! अणेगा अभिवयणा पन्नत्ता, तं जहा-पोग्गले ति वा, पोग्गलत्थिकाये ति वा, परमाणुपोग्गले ति वा, दुपदेसिए ति वा, तिपदेसिए ति वा जाव असंखेज्जपदेसिए ति वा अणंतपवेसिए ति वा खंधे, जे यावन्ने तहप्पकारा सम्वे ते पोग्गलस्थिकायस्स अभिवयणा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति। ॥चीसइमे सएः बीओ उद्देसओ समत्तो॥२०-२॥ [8 प्र.] भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के कितने अभिवचन कहे गए हैं ? [8 उ.] गौतम ! (उसके ) अनेक अभिवचन कहे गए हैं / यथा—पुद्गल, पुद्गलास्तिकाय, परमाणु-पुद्गल, अथवा द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी यावत् असंख्यातप्रदेशी और अनन्तप्रदेशीस्कन्ध; ये और इसके समान अन्य अनेक अभिवचन पुद्गल के हैं / हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरण करते हैं। // वीसवां शतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त // 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 776-777 (ख) भगवती. विवेचन भा. 6 (पं. घेवरचंदजी), पृ. 2840-41 (ग) प्राणा: द्वि-त्रि-चतुः प्रोक्ता, भूतास्तु तरवः स्मृताः / जीवाः पंचेन्द्रियाः प्रोक्ता: शेपाः सत्त्वा उदीरिताः / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org