________________ छछा उद्देशक छठे उद्देशक की छत्तीस द्वार निरूपक गाथा 387, प्रथम प्रज्ञापनाद्वार : निर्ग्रन्थों के भेद-प्रभेद 387, द्वितीय क्षेत्रद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में स्त्रीवेदादि प्ररूपप्णा 391, तृतीय रागद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में सरागत्व वीतरागत्व प्ररूपणा 393, चतुर्थ कल्पद्वार पंचविध निर्ग्रन्थों में स्थितिकल्पादि-जिनकल्पादि-प्ररूपणा 394, पंचम चारित्रद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में चारित्र प्ररूपणा 396, छठा प्रतिसेवनाद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में मूलउत्तरगुण प्रतिसेवन-अप्रतिसेवन-प्ररूपणा 397, सप्तम ज्ञानद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में ज्ञान और श्रुताध्ययन की प्ररूपणा 398, पाठवाँ तीर्थद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में तीर्थ-अतीर्थ प्ररूपणा 400, नौवाँ लिंगद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में स्वलिंग-प्रलिंग-गृहीलिंग-प्ररूपणा 401, दसवाँ शरीरद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में शरीर-भेद-प्ररूपणा 402, ग्यारहवाँ क्षेत्रद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में कर्मभूमि-प्रकर्मभूमिप्ररूपणा 403, बारहवाँ कालद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में अवसर्पिणी-उत्सपिणीकालादि-प्ररूपणा 404, तेरहवाँ गतिद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों की गति, पदवी तथा स्थिति की प्ररूपणा 408, चौदहवाँ संयमद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों के संयमस्थान और उनका अल्पबहत्व 411, पन्द्रहवाँ निकर्ष (सनिकर्ष) द्वार : पांचों प्रकार के निग्रन्थों में अनन्त चारित्र पर्याय 412, पंचविध निर्ग्रन्थों के जघन्य-उत्कृष्ट चारित्र पर्यायों का अल्पबहत्व 416, सोलहवां योगद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थो में योगों की प्ररूपणा 420, सत्तरहवा उपयोगद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में उपयोग-प्ररूपणा 420, अठारहवाँ करायद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में कषायप्ररूपणा 421, उन्नीसवा लेश्याद्वार : लेश्याओं को प्ररूपणा 422, बीसवाँ परिणामद्वार : वर्धमानादि परिणामों की प्ररूपणा 424, इक्कीसवाँ द्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में कर्मप्रकृति-बंध-अरूपणा 427, बाईसवाँ द्वार : निर्ग्रन्थों में कर्मप्रकृति-वेदन-निरूपण 428, तेईसवाँ कर्मोदीरणाद्वार : कर्मप्रकृति-उदीरणा-प्ररूपणा 429, चौवीसा उपसम्पद्-जह्द्-द्वार : स्वस्थानत्याग-परस्थान-सम्प्राप्ति निरूपण 431, पच्चीसवाँ संज्ञाद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में संज्ञाओं की प्ररूपणा 432, छब्बीसवाँ आहारद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में याहारक-अनाहारक-निरूपण 433, सत्ताईसवाँ भवद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में भवग्रहण-प्ररूपणा 434, अदाईसवी आकर्षद्वार : एकभव-नानाभव ग्रहणीय आकर्ष-प्ररूपणा 435, उनतीसवाँ कालद्वार : पंचविध निम्रन्थों में स्थितिकाल-निरूपण 437, तीसवाँ अन्तरद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में काल के अन्तर का निरूपण 438, इकतीसवाँ समूदधातद्वार : समुदघातों की प्ररूपपा 440, बत्तीसवाँ क्षेत्रद्वार : परविध निर्ग्रन्थों में अवगाहना क्षेत्र-प्ररूपण 441, तेतीसवाँ स्पर्शनाद्वार: पंचविध निर्ग्रन्थों में क्षेत्रस्पर्शना-प्ररूपणा 442, चौतीसवाँ भावद्वार : औपशमिकादि भावों का निरूपण 442, पंतीसवाँ परिमाणद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों का एक समय का परिमाण 443, छत्तीसवाँ अल्पबहत्वद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में अल्पबहुत्व प्ररूपण 445 / सप्तम उद्देशक प्रथम प्रज्ञापनाद्वार : संयतों के भेद-प्रभेद का निरूपण 447, संयत-स्वरूप 448, द्वितीय वेदद्वार: पंचविध संयतों में सवेदी-प्रवेदी प्ररूपणा 450, तृतीय रागद्वार : पंचविध संयतों में सरागता-वीतरागता-निरूपण 450, चतुर्थ कल्पद्वार : पंचविध संयतों में स्थितकल्पादि प्ररूपणा 451, पंचम चारित्रद्वार : पंचविध संयतों में पुलाकादि प्ररूपणा 452, छठा प्रतिसेबनाद्वार : पंचविध संयतों में प्रतिसेवन-अप्रतिसेवन प्ररूपणा 453, सप्तम ज्ञानद्वार : पंचविध संयतों में ज्ञान और श्रताध्ययन की प्ररूपणा 453, अष्टम तीर्थद्वार : पंचविध संयतों में तीर्थअतीर्थ प्ररूपणा 455, नौवाँ लिंगद्वार : पंचविध संयतों में स्व-अन्य गहिलिंग प्ररूपणा 455, दसवां शरीरद्वार: . [115 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org