________________ व्याख्याप्रज्ञप्ति में प्रश्नोत्तरों के साथ हो 96000 छिन्न छेदनयों५४ से ज्ञापनीय शुभ और अशुभ का वर्णन है 55 / प्रस्तुत प्रागम में एक श्रुतस्कन्ध, एक सौ एक अध्ययन, दस हजार उद्दे श नकाल, दस हजार समुद्देशनकाल, छत्तीस हजार प्रश्न और उनके उत्तर, 288000 पद और संख्यात अक्षर हैं। व्याख्याप्रज्ञप्ति की वर्णनपरिधि में अनंत गम, अनंत पर्याय, परिमित स और अनन्त स्थावर पाते हैं। प्राचार्य अभयदेव ने पदों की संख्या 288000 बताई है तो समवायाङ्ग में पदों की संख्या 84000 बताई है। व्याख्याप्रज्ञप्ति के अध्ययन 'शतक' के नाम से विश्रुत हैं। वर्तमान में इसके 138 शतक और 1925 उद्देशक प्राप्त होते हैं। प्रथम 32 शतक पूर्ण स्वतंत्र हैं, तेतीस से उन चालीस तक के सात शतक 12-12 शतकों के समवाय है। चालीसवां शतक 21 शतकों का समवाय है। इकतालीसवाँ यातक स्वतंत्र है। कुल मिलाकर 138 शतक हैं। इनमें 41 मुख्य और शेष अवान्तर शतक हैं। शतकों में उद्देशक तथा अक्षर-परिमाण इस प्रकार है शतक उद्देशक अक्षर-परिमाण शतक उद्देशक अक्षर-परिमाण m our 22443 . 8027 19871 10 पाठ वर्ग 80 छह वर्ग 60 पांच वर्ग 50 38841 23818 36702 -753 25691 18652 24935 48534 45859 1068 NP 9 Mor GICA80 0 / K AWW 100 0 0 GM W00 1 39126 45103 4455 190 694 1027 4764 2344 Mr 32338 32808 21914 39812 x (12)124 (12)124 3089 8964 " 8412 54. वह व्याख्यापद्धति, जिसमें प्रत्येक श्लोक और सूत्र की स्वतंत्र व्याख्या की जाती है और दूसरे श्लोकों और सूत्रों से निरपेक्ष व्याख्या भी की जाती है। वह व्याच्यापद्धति छिन्नछेदनय के नाम से पहचानी जाती है। 55. कषायपाहुड भाग 1, पृ. 125 [21] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org