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________________ व्याकरण है। दिगम्बरपरम्परा के आचार्य प्रकलंकने, आचार्य पुष्पदंत और भूतबलि ने और प्राचार्य गुणधर४३ ने लिखा है कि व्याख्याप्रज्ञप्ति में 60,000 प्रश्नों का व्याकरण है / उसका प्राकृत नाम 'विहायपण्यत्ति' है। किन्तु प्रतिलिपिकारों ने विवाहपण्णति और वियाहपण्णति ये दोनों नाम भी दिए हैं। नवांगी टीकाकार प्राचार्य अभयदेव ने वियाहपरगत्ति का अर्थ करते हुए लिखा है-गौतम आदि शिष्यों को उनके प्रश्नों का उत्तर प्रदान करते हुए श्रमण भगवान् महावीर ने श्रेष्ठतम विधि से जो विविध विषयों का विवेचन किया है, वह गणधर आर्य सुधर्मा द्वारा अपने शिष्य जम्बू को प्ररूपित किया गया। जिसमें विशद विवेचन किया गया हो वह व्याख्याप्रज्ञप्ति है 50 / अन्य आगमों की अपेक्षा व्याख्याप्रज्ञप्ति प्रागम अधिक विशाल है। विषयवस्तु की दष्टि से भी इसमें विविधता है / विश्वविद्या की ऐसी कोई भी अभिधा नहीं है, जिसकी प्रस्तुत आगम में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में चर्चा न की गई हो / प्रश्नोत्तरों के द्वारा जैन तत्त्वज्ञान, इतिहास की अनेक घटनाएं, विभिन्न व्यक्तियों का वर्णन और विवेचन इतना विस्तृत किया गया है कि प्रबुद्ध पाठक सहज ही विशाल ज्ञान प्राप्त कर लेता है। इस दृष्टि से इसे प्राचीन जैन ज्ञान का विश्वकोष कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी। इस आगम के प्रति जनमानस में अत्यधिक श्रद्धा रही है / इतिहास के पष्ठ साक्षी हैं, श्रद्धालु श्राद्धगण भक्ति-भावना से विभोर होकर सद्गुरुत्रों के मुख से इस आगम को सुनते थे तो एक-एक प्रश्न पर एक-एक स्वर्ण-मुद्राएं ज्ञान-वृद्धि के लिए दान के रूप में प्रदान करते थे। इस प्रकार 36000 स्वर्ण-मुद्राएं समर्पित कर व्याख्याप्रज्ञप्ति को श्रद्धालुओं ने सुना है। इस प्रकार इस पागम के प्रति जनमानस में अपार श्रद्धा रही है। श्रद्धा के कारण ही व्याख्याप्रज्ञप्ति के पूर्व 'भगवती' विशेषण प्रयुक्त होने लगा और शताधिक वर्षों से तो 'भगवती' विशेषण न रहकर स्वतंत्र नाम हो गया है। वर्तमान में 'व्याख्याप्रज्ञप्ति' की अपेक्षा 'भगवती' नाम अधिक प्रचलित है। समवायान में यह बताया गया है कि अनेक देवताओं, राजापों व राजऋषियों ने भगवान महावीर से विविध प्रकार के प्रश्न पूछे। भगवान ने उन सभी प्रश्नों का विस्तार से उत्तर दिया / इस प्रागम में स्वसमय, परसमय, जीव, अजीव, लोक, अलोक प्रादि की व्याख्या की गई है / प्राचार्य अकलङ्क के मन्तव्यानुसार प्रस्तुत प्रागम में जीव है या नहीं? इस प्रकार के अनेक प्रश्नों का निरूपण किया गया है५३ / प्राचार्य बीरसेन ने बताया है कि . 47. तत्त्वार्थवातिक 120 48. षट्ख डागम, खण्ड 1, पृष्ठ 101 49. कषायपाहुड, प्रथम खण्ड, पृष्ठ 125 50. (क) "वि-विविधा, आ-अभिविधिता, ख्या-ख्यानाति भगवतो महावीरस्य गौतमादीत विनेयान प्रति प्रश्नितपदार्थप्रतिपादनानि व्याख्याः, ता: प्रज्ञाप्यन्ते, भगवता सुधर्मस्वामिना जम्बुनामानमभि यस्याम् / " (ख) विवाह-प्रज्ञप्ति-अर्थात् जिसमें विविध प्रवाहों की प्रज्ञापना की गई है-वह विवाहप्रज्ञप्ति है / (ग) इसी प्रकार 'विवाहपण्णत्ति' शब्द की व्याख्या में लिखा है-'विबाधाप्रज्ञप्ति' अर्थात् जिसमें निर्बाध रूप से अथवा प्रमाण से प्रवाधित निरूपण किया गया है, वह विवाहपण्णत्ति है। 51. महायान बौद्धों में प्रज्ञापारमिता जो ग्रन्थ है उसका अत्यधिक महत्त्व है अतः अष्ट प्राहसिका प्रज्ञापारमिता का अपर नाम भगवती मिलता है। -देखिए-शिक्षा समुच्चय, पृ. 104-112 52. समवायाङ्ग, सूत्र 93 53. तत्त्वार्थवार्तिक, 120 [20] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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