________________ अभिमत वाणीभूषण पण्डित श्रीरतनमुनिजी महाराज श्रमणसंघ के युवाचार्य श्री मधुकरमुनिजी महाराज के प्रधानसम्पादकत्व में जैन आगमों के विशुद्ध पाठ, अनुवाद एवं विवेचनयुक्त प्रकाशन का जो ऐतिहासिक कार्यक्रम प्रारंभ हुआ, वह सम्पूर्ण जैन समाज के लिए गौरव तथा गरिमा का प्रसंग है। अब तक के प्रकाशित आगमों के सभी संस्करणों से इनकी कुछ अलग विशेषता है—न अतिसंक्षेप, न अति विस्तार, न बहुत ही दुर्बोध, न अति साधारण। प्रायः शास्त्रों के अनुवाद बहुत ही भावानुलक्षी हैं। मूल के साथ अनुवाद पढ़ने पर सरलतापूर्वक आगमपाठ का सार समझ में आ जाता है। कठिन व विवेच्य स्थलों पर विवेचन भी उपयोगी और ज्ञानवर्धक है।"..." इन आगमों के स्वाध्याय से अवश्य ही ज्ञानवृद्धि होगी तथा जिनवाणी का हार्द समझने में जिज्ञासुओं को विशेष सहायता मिलेगी। आगमसेवा के इस महान् कार्य में समाज को एकचित्त होकर सह्योग करना चाहिए। आने वाला युग इसका मूल्यांकन करेगा और स्थानकवासी समाज की श्रुत-सेवाओं का शताब्दियों तक इतिहास में नाम अमर लिखा जाएगा। E gon international