________________ 800] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [11 उ.] गौतम ! पुद्गल-करण पांच प्रकार का कहा गया है, यथा-वर्णकरण, गन्धकरण, रसकरण, स्पर्श करण और संस्थानकरण / 12. बण्णकरणे गं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ? गोयमा ! पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा-कालवणकरणे जाय सुविकलवण्णकरणे। [12 प्र.] भगवन् ! वर्णकरण कितने प्रकार का कहा गया है ? {12 उ.] गौतम ! वर्णकरण पांच प्रकार का कहा गया है। यथा-कृष्णवर्णकरण यावत् शुक्लवर्ण-करण / 13. एवं भेदो--गंधकरणे दुविधे, रसकरणे पंचविधे, फासकरणे अटुविधे। [13] इसी प्रकार पुद्गलकरण के वर्णादि-भेद (कहने चाहिए / ) (यथा-) दो प्रकार का गन्धकरण, पांच प्रकार का रस-करण एवं पाठ प्रकार का स्पर्शकरण / 14. संठाणकरणे गंभंते ! कतिविधे पन्नते? गोयमा ! पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा--परिमंडलसंठाणकरणे जाव आयतसंठाणकरणे।' सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरति / // एगूणवीसइमे सए : नवमो उद्देसओ समत्तो // 19-9 // [14 प्र.] भगवन् ! संस्थान-करण कितने प्रकार का कहा गया है ? [14 उ.] गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है / यथा-परिमण्डल-संस्थानकरण यावत्-पायत-संस्थान-करण / ___'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है,' यों कहकर यावत् गौतमस्वामी विचरते हैं। विवेचन--पुदगलकरण के भेद-प्रभेदों का निरूपण---इन चार सूत्रों में पुद्गलों के 25 भेदों को करण रूप में निरूपित किया गया है। पुद्गल के भेद सुगम हैं। ॥उन्नीसवां शतक : नौवाँ उद्देशक समाप्त / / 1. करणभेद-प्रभेद-दशिनीगाथाद्वय नवम-उद्देशक की समाप्ति के बाद मिलती हैं-- दम्वे खेत काले भवे य भावे सरीरकरणे य। इंदियकरणे भासामणे कसाए समुग्याए // 1 // सन्ना लेसा दिट्ठि वेए पाणाइवाय-करणेय / पोग्गलकरणे बन्नेगंधेरसे य फासे य संठाणे // 2 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org