________________ उन्नीसवां शतक : उद्देशक 8] [791 16. एवं एगिदियवज्जं जस्स जा भासा जाव वेमाणियाणं / [16] इस प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़ कर यावत्-वैमानिक तक, जिसके जो भाषा हो, उसके उतनी भाषानिवृत्ति कहनी चाहिए। 17. कतिविहा णं भंते ! मणनिवत्ती पन्नत्ता ? गोयमा ! चउम्विहा मणनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा-सच्चमणनिव्वत्तो जाव असच्चामोसमणतिव्वत्ती। [17 प्र.] भगवन् ! मनोनिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? [17 उ.] गौतम ! मनोनिवृत्ति चार प्रकार की कही गई है। यथा-सत्यमनोनिवृत्ति, यावत् असत्यामृषामनोनिवृत्ति / 18. एवं एगिविय-विलिदियवज्ज जाव वेमाणियाणं / [18] इसी प्रकार एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय को छोड़ कर यावत् वैमानिक तक कहना चाहिए। 19. कतिविहा णं भंते ! कसायनिवत्ती पन्नत्ता? गोयमा! चउविवहा कसायनिव्वती पन्नत्ता, तं जहा-कोहकसायनिव्वत्ती जाव लोभकसायनिवत्ती। [16 प्र.] भगवन् ! कषाय-निवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? / [16 उ.] गौतम ! कषायनिवृत्ति चार प्रकार की कही गई है। यथा-क्रोधकषायनिवृत्ति यावत् लोभकषायनिर्वृत्ति / 20. एवं जाव वेमाणियागं / [20] इसी प्रकार यावत् वैमानिक-पर्यन्त कहना चाहिए / 21. कतिविधा णं भंते ! वण्णनिव्वत्तो पन्नत्ता ? गोयमा ! पंचविहा वणनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा–कालवण्णनिव्वत्ती जाव सुक्किलवण्णनिव्वत्ती। [21 प्र. भगवन् ! वर्णनिर्वत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? [21 उ.] गौतम ! वर्गनिर्वृत्ति पांच प्रकार की कही गई है। यथा-कृष्णवर्णनिर्वत्ति, यावत् शुक्लवर्णनिर्वृत्ति / 22. एवं निरवसेसं जाव वेमाणियाणं / [22] इसी प्रकार ने रयिकों से लेकर यावत् वैमानिक-पर्यन्त समग्र वर्ण निवृत्ति कहनी चाहिए / 23. एवं गंधनिवत्ती दुविहा जाव वेमाणियाणं / [23] इसी प्रकार दो प्रकार की गन्ध-निवृत्ति, यावत् वैमानिकों तक कहनी चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org