________________ अदुमो उद्देसओ : 'निव्वत्ति' आठवाँ उद्देशक : निवृत्ति जीव-निर्वत्ति के भेद-अभेद का निरूपण 1. कतिविधा णं भंते ! जीवनिव्वत्ती पन्नत्ता? गोयमा ! पंचविहा जीवनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा—एगिदियजीवनिव्वत्ती जाव पंचिदियजीवनिन्धत्ती। [1 प्र. भगवन् ! जीवनिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? [1 उ.] गौतम ! जीवनित्ति पांच प्रकार की कही गई है। यथा-एकेन्द्रिय-जीवनिर्वृत्ति यावत् पंचेन्द्रिय-जीवनिर्वृत्ति। 2. एगिदियजीवनिव्वत्ती णं भंते ! कतिविधा पन्नत्ता? गोयमा ! पंचविधा पन्नत्ता, तं जहा -पुढविकाइयएगिदियजीवनिवत्ती जाव बणस्सइकाइय- . एगिदियजीवनिव्वत्ती। [2 प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय-जीव-निवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? [2 उ.) गौतम ! वह पांच प्रकार की कहो गई है / यथा-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-जीवनिवृत्ति यावत् वनस्पतिकायिक-एकेन्द्रिय-जीवनिर्वति / 3. पुढविकाइयएगिदियजीवनिवत्ती णं भंते ! कतिविधा पन्नत्ता ? गोयमा ! दुविहा पन्नता, तं जहा -सुहुमपुढयिकाइयएगिवियजीवनिव्वत्ती य बायरपुढवि० : [3 प्र.] भगवन् ! पृवीकायिक-एकेन्द्रिय-जीवनिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? [3 उ.] गौतम ! वह दो प्रकार की कही गई है / यथा--सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-जीवनिर्वृत्ति और बादरपृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-जीवनिर्वृत्ति / 4. एवं एएणं अभिलावेणं भेदो जहा बडगबंधे (स० 8 उ० 9 सु० 90-91) तेयगसरीरस्स सव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववातियकप्पातीतवेमाणियदेवपंचेंदियजीवणिब्धत्ती णं भंते ! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा--पज्जत्तगसबढसिद्धअणुत्तरोववातिय जाय देवपंचेंदियजीवनिव्वत्तीय अपज्जगसव्वदृसिद्धअणुत्तरोववाइय जाव देवपंचेंदियजीवनिव्वत्तीय / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org