________________ 786] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 6. केवतिया णं भंते ! जोतिसियविमाणावाससयसहस्सा० पुच्छा? गोयमा! असंखेज्जा जोतिसियविमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता। [6 प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्क देवों के विमानावास कितने लाख कहे गए हैं ? [6 उ.] गौतम ! (उनके विमानावास) असंख्येय लाख कहे गए हैं। 7. ते गं भंते ! किमया पन्नता? गोयमा ! सवफालिहामया अच्छा, सेसं तं चेव / [7 प्र.] भगवन् ! वे विमानावास किस वस्तु से निर्मित हैं ? [7 उ.] गौतम ! वे विमानावास सर्वस्फटिकरत्नमय हैं और स्वच्छ हैं; शेष सब वर्णन पूर्ववत् समझना चाहिए। 8. सोहम्मे गं भंते ! कप्पे केवतिया विमाणावाससयसहस्सा पन्नत्ता? गोयमा ! बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा० / [8 प्र.] भगवन् ! सौधर्मकल्प में कितने लाख विमानावास कहे गए हैं ? [8 उ.] गौतम ! उसमें बत्तीस लाख विमानावास कहे गए हैं। 9. ते णं भंते ! किमया पन्नत्ता? गोयमा ! सम्वरयणामया अच्छा, सेसं तं चेव / [6. प्र.] भगवन् ! वे विमानावास किस वस्तु के बने हुए हैं ? [6 उ.] गौतम ! वे सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं, शेष सब वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए / 10. एवं जाव अणुत्तरविमाणा, नवरं जाणियव्या जलिया भवणा विमाणा वा / सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०। / एगूणवीसइमे सए : सत्तमो उद्देसओ समत्तो // 19-7 // [10] इसी प्रकार (का वर्णन सौधर्मकल्प से लेकर) यावत्-अनुत्तरविमान तक कहना चाहिए / विशेष यह कि जहाँ जितने भवन या विमान (शास्त्र-निर्दिष्ट) हों, (उतने कहने चाहिए।) 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है'; यों कहकर गौतम-स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-देवों के भवनावासों और विमानावासों की संख्यादि-प्रस्तुत 10 सूत्रों (सू. 1 से 10 तक) में भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के भवनावास, नगरावास एवं विमानावासों की संख्या कितनी-कितनी है ? किस वस्तु से वे निमित ? तथा वे कैसे हैं ? इत्यादि सब वर्णन इस उद्देशक में किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org