________________ [व्याख्याप्रतिसूत्र 46. देवे णं भंते ! माहिडीए एवं धातइसंडं दीवं जाव / हंता, पभू। [46 प्र.] भगवन् ! महद्धिक यावत् महासुखी देव धातकीखण्ड द्वीप के चारों ओर चक्कर लगा कर शीघ्र पाने में समर्थ हैं ? [46 उ.] हाँ, गौतम ! वे समर्थ हैं। 47. एवं जाव स्थगवरं दीवं जाव ? हंता, पभू / तेण परं वीतीवएज्जा नो चेव गं प्रणुपरियटेज्जा। [47 प्र.] भगवन् ! क्या इसी प्रकार वे देव रुचकवर द्वीप तक चारों ओर चक्कर लगा कर पाने में समर्थ हैं ? [47 उ.] हाँ, गौतम ! समर्थ हैं। किन्तु इससे आगे के द्वीप-समुद्रों तक देव जाता है, किन्तु उसके चारों ओर चक्कर नहीं लगाता / विवेचन–महद्धिक देवों का अनुपर्यटन-सामर्थ्य-महद्धिक देव, लवणसमुद्र धातकीखण्ड, रुचकवरद्वीप आदि के चारों ओर चक्कर लगाकर शीघ्र आ सकते हैं, किन्तु इससे आगे के द्वीपसमुद्रों तक वे जा सकते हैं, मगर उनके चारों ओर चक्कर नहीं लगाते, क्योंकि तथा-विध प्रयोजन का अभाव है।' सभी देवों द्वारा अनन्त कर्माशों को क्षय करने के काल का निरूपण 48. अस्थि णं भंते ! ते देवा जे अगते कम्मसे जहन्नेण एक्केणं वा दोहि वा तोहि वा, उक्कोसेणं पंचहि वाससएहि खवयंति ? हंता, अस्थि / [48 प्र.] भगवन् ! क्या इस प्रकार के भी देव हैं, जो अनन्त (शुभकर्मप्रकृतिरूप) कर्माशों को जघन्य एक सौ, दो सौ या तीन सौ और उत्कृष्ट पांच सौ वर्षों में क्षय कर देते हैं ?, [48 उ.] हाँ, गौतम ! (ऐसे देव) हैं। 49. अस्थि गं भंते ! ते देवा जे अणते कम्मसे जहन्नेणं एक्केण वा दोहि वा तीहि वा, उक्कोसेणं पंचहि वाससहस्सेहि खवयंति ? हंता, अस्थि / [49 प्र.] भगवन् ! क्या ऐसे देव भी हैं, जो अनन्त कर्माशों को जघन्य एक हजार, दो हजार या तीन हजार और उत्कृष्ट पांच हजार वर्षों में क्षय कर देते हैं ? [46 उ.] हाँ, गौतम ! (ऐसे देव) हैं। 1. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. 2. पृ. 821 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org