________________ 158] व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 'करने से जो पूर्व की जो क्रिया है, वह दुःखरूप है, वर्तमान में जो क्रिया की जाती है, वह दुःखरूप नहीं है और करने के समय के बाद की कृतक्रिया भी दुःखरूप है।' [प्र.] वह जो पूर्व की क्रिया है, वह दुःख का कारण है; की जाती हुई क्रिया दुःख का कारण नहीं है और करने के समय के बाद की क्रिया दुःख का कारण है; तो क्या वह करने से दुःख का कारण है या न करने से दुःख का कारण है ? [उ.] न करने से वह दुःख का कारण है, करने से दुःख का कारण नहीं है। ऐसा कहना चाहिए। अकृत्य दुःख है, अस्पृश्य दुःख है, और अक्रियमाण कृत दुःख है। उसे न करके प्राण, भूत, जीव और सत्त्व वेदना भोगते हैं, ऐसा कहना चाहिए। [प्र.] श्री गौतमस्वामी पूछते हैं-'भगवन् ! क्या अन्यतीथिकों का इस प्रकार का यह मत सत्य है ?' [उ.] गौतम ! यह अन्यतीथिक जो कहते हैं यावत् वेदना भोगते हैं, ऐसा कहना चाहिए, उन्होंने यह सब जो कहा है, वह मिथ्या कहा है। हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूँ कि जो चल रहा है, वह 'चला' कहलाता है और यावत् जो निर्जर रहा है, वह निर्जीर्ण कहलाता है। दो परमाणु पुद्गल आपस में चिपक जाते हैं। इसका क्या कारण है ? दो परमाणु पुद्गलों में चिकनापन है, इसलिए दो परमाणु पुद्गल परस्पर चिपक जाते हैं। इन दो परमाणु पुद्गलों के दो भाग हो सकते हैं। दो परमाणु पुद्गलों के दो भाग किये जाएँ तो एक तरफ एक परमाणु और एक तरफ ९क परमाणु होता है। तीन परमाणुपुद्गल परस्पर चिपक जाते हैं। तीन परमाणुपुद्गल परस्पर क्यों चिपक जाते हैं ! तीन परमाणुपुद्गल इस कारण चिपक जाते हैं, कि उन परमाणुपुद्गलों में चिकनापन है। इस कारण तीन परमाणु पुद्गल परस्पर चिपक जाते हैं। उन तीन परमाणुपुद्गलों के दो भाग भी हो सकते हैं.और तीन भाग भी हो सकते हैं। दो भाग करने पर एक तरफ परमाण, और एक तरफ दो प्रदेश वाला एक द्वयणक स्कन्ध होता है। तीन भाग करने पर एक-एक करके तीन परमाणु हो जाते हैं / इसी प्रकार यावत्-चार परमाणु पुद्गल में भी समझना चाहिए / परन्तु तीन परमाणु के डेढ-डेढ (भाग) नहीं हो सकते। पाँच परमाणुपुद्गल परस्पर चिपक जाते हैं और परस्पर चिपककर एक स्कन्धरूप बन जाते हैं / वह स्कन्ध अशाश्वत है और सदा उपचय तथा अपचय पाता है / अर्थात्-वह बढ़ता घटता भी है। बोलने से पहले की भाषा प्रभाषा है; बोलते समय की भाषा भाषा है और बोलने के बाद की भाषा भी प्रभाषा है। [प्र.] वह जो पहले की भाषा अभाषा है, बोलते समय की भाषा भाषा है, और बोलने के बाद की भाषा अभाषा है; सो क्या बोलने वाले पुरुष की भाषा है, या नहीं बोलते हुए पुरुष को भाषा है ? [उ.] वह बोलने वाले पुरुष की भाषा है, नहीं बोलते हुए पुरुष की भाषा नहीं है / (करने से पहले की क्रिया दुःख का कारण नहीं है, उसे भाषा के समान ही समझना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org